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Thursday, October 25, 2007

साहिर साहब और ये चाँद....

25 अक्तूबर 1980, एक ऐसा दिन जिसने हमसे एक हरदिल अजीज शायर को हमसे छीन लिया था। जी हाँ , मैं बात कर रहा हूँ शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी साहब की। यूँ तो उनका नाम उनके वाल्दायन ने रखा था अब्दुल हई, पर हम उन्हें साहिर लुधियानवी के नाम से ही जानते हैं।

८ मार्च १९२१ की बात है जब साहिर साहब ने इस दुनिया में कदम रखा। और किसे पता था कि लुधियाना में उदित होने वाला यह सितारा एक दिन सारे सारे जहाँ में अपनी चमक बिखेर देगा। जमींदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी साहिर का जीवन संघर्षपूर्ण रहा। अपने कॉलेज की पढाई उन्होने लाहौर में पूरी की उन्ही दिनों शुरुआत हुई थी उनकी ग़ज़लों और नज्मों की बरसात। कहा जाता है कि उस बरसात से अमृता प्रीतम जी भी नहीं बच पाई थीं। शायद उपर वाले को भी ये मंजूर नहीं था ,इसलिए उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया।
इसी के बाद उन्होने अपनी पहली उर्दू रचना " तल्खियां" लिखनी शुरू की थी जो दो वर्ष बाद प्रकाशित हुई।

आज मैं आपको साहिर साहब की रचना " ये रात ये चांदनी फिर कहाँ ...." सुनवाने जा रहा हूँ। इस गीत को गाया है हमारे आपके प्रिय हेमंत दा ने जिनकी आवाज़ भी इस गीत की तरह ही शफ्फाक़ है। इस गीत को सुनवाने में भी एक रहस्य छुपा है।

जी हाँ, आज पूर्णिमा है और nasa अर्थात अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि आज ( गुरुवार,2५ अक्तूबर ) की रात ये चाँद हमारी पृथ्वी के काफी करीब होगा और अन्य पूर्णिमा के बदले आज चाँद 14 % बड़ा और 30% ज्यादा चमकदार दिखेगा। यानी आज अपना चाँद पूरे शबाब पर होगा।

क्यों , है ना बात आज के चाँद में ?
तो आइये हम एक साथ ही चाँद के बहाने साहिर साहब को याद करें या साहिर साहब के चाँद को देख कर उन्हें श्रद्धान्जलि अर्पित करें.....

शायरी को दाद देते हुए सुने ये गीत....

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Monday, October 22, 2007

नया दिन... नया रास्ता

दोस्तो, नमस्कार !
10 दिनों तक भक्ति भाव में डूबे रहने के बाद अब आपके सामने एक बार पुनः अलग अलग विषयों को लेकर हाजिर हो जाउंगा। इन दस दिनों में ब्लॉग लेखन की कई कटु-मधुर अनुभूतियाँ मुझे हुईं। किसी विषय को लगातार लेकर चलना ही सबसे बड़ी बात होती है। नए ब्लॉग लेखक के किसी पोस्ट को १८-१९ दर्शनार्थी मिल गए मैं काफी समझता हूँ। सबसे प्रभावित हुआ मैं उड़न तश्तरी जी अर्थात समीर जी से जो सबों को उत्साहित तो करते हैं ही ,मुझे भी प्रोत्साहन दिया।
हालांकि मैं इतने दिनों में जान पाया हूँ कि दर्शनार्थिओं की भीड़ अपनी और करने के क्या गुर है, जगजीत सिंह जी की अपनी पोस्ट के बाद मैंने इसका अनुभव भी किया था। शायद मैं अपना वही टेंपो ला सकूं। आप सबों के सहयोग की कामना रहेगी। शायद रोज नहीं पर दो दिनों में एक बार तो हाजिर हो ही जाऊँगा। कोशिश तो रोज की करूंगा।
आज कोई पोडकास्ट नहीं.

Sunday, October 21, 2007

विदाई माँ की

माँ रक्षा करो।

आज माता हम सबों को छोड़ कर अपने घर वापस जा रही हैं। जी हाँ, माँ नौ दिनों तक अपने नैहर में रह लीं, अब हम सबों को रोता छोड़ कर जा रही हैं। माँ की आंखों में भी आंसू हैं। नौ दिन हम सबने माँ की पूजा और अब दसवें दिन हम उन्हें अपने घर विदा कर रहे हैं, खोइंछा भर कर दे रहे हैं, माँ से आशीष माँग रहे हैं अगले एक साल के लिए कि हे माँ हमें आपने इतने दिनों तक अपने आगोश में रखा , हमारी रक्षा की, आगे भी करें ताकि अगले साल हम और भी अच्छे से आपकी अगवानी कर सकें।

माँ ने मुझे शक्ति दी कि मैं आप सबों के साथ उनके स्वरूप का आह्वान कर सका। जिन्होंने मेरे पोस्ट्स को इतने दिनों तक पढ़ा और जिन्होंने नहीं पढ़ा उन सबों की और से मैं माँ से एक बार पुनश्च माफी मांगता हूँ कि अगर इन नौ दिनों में अगर मुझसे कोई भी भूल हुई हो तो मुझे माफ़ करें, आशीर्वाद दें कि अगली बार मैं और भक्ति से ओतप्रोत होकर आपका गुणगान कर सकूं।

माँ तो अंतर्यामी हैं, सबों के दिल का हाल जानती हैं,उनसे क्या कहना और क्या नहीं कहना? फिर भी हम अपनों के सामने ही तो अपने दिल का हाल सुनाते हैं। अपने दिल को तो उन्हीं के सामने चाहे रो कर चाहे हंस कर हल्का कर लेते हैं। तो फिर माँ से नहीं कहूंगा तो किससे कहूँगा। आज इस गोधूलि बेला में माँ को जाते हुए देख रहा हूँ, कह रहा हूँ ,हे माँ, जो मैं इस साल नहीं पा सका आशीष दो कि अगले बार उसे पाकर तुम्हारी आराधना कर सकूं। ताकि एक नया उत्साह संचार हो सके।

अभी जब सारा माहौल सन्नाटे में परिणत होता जारहा है, दूर कहीं से औरतों के द्वारा गाया जा रहा माँ का विदाई गीत सुन पा रहा हूँ। अभी अगर मैं अपने गाँव में होता तो उस गाने को रेकॉर्ड कर जरूर आपको भी सुनवाता। पर मैं जानता हूँ कि हमारे सुधि भक्त जन कहीं न कहीं उस गीत को अपने - अपने तौर पर जरूर याद कर रहे होंगे।

आज मैं बहुत भावुक होता जा रहा हूँ इस लिए अपने मन की सारी बात इस पोस्ट में उड़ेल रहा हूँ। आशा है कि आप मेरे मन की भावनाओं को समझ पा रहे होंगे। पर जिन्दगी है, चलती रहेगी, हम आप फिर भी मिलते रहेंगे। नए अध्याय जुड़ते रहेंगे।

आज मैं आपको अपना वही पसंदीदा माँ का भजन सुनवाने जा रहा हूँ जिसे आप पहले भी सुन चुके हैं, पर एक बार पुनः सुने , एक क्षमा प्रार्थना के साथ.

Aisa pyar baha de ...

Saturday, October 20, 2007

"नवम् सिद्धिदात्री"


या देवी सर्वभूतेषु,
क्षमा रूपेण संस्थिता:,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः॥

माता के अनन्य भक्तजन,
आज नवरात्रि का नवम दिवस अर्थात अन्तिम दिवस है। आप सबों के साथ किस तरह ये नौ दिन गुजर गए खुद मुझे भी नहीं पता चला। आप सबों का साथ ही था जो मैं माँ के नवों स्वरूप की जानकारी आप तक पहुंचा सका। साधुवाद।
आज नौवें दिन माँ के नौवें स्वरूप की पूजा की जाती है जिसे " सिद्धिदात्री" कहा जाता है, अर्थात "नवम् सिद्धिदात्री".

माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है, पर ये कमल पुष्प पर भी विराजमान होती हैं। इनके दाएं ऊपर वाले हाथ में गदा तथा नीचे वाले हाथ में चक्र है। माँ के बाएँ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर के हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है।
माँ सभी आठों सिद्धियों - अणिमा,महिमा,गरिमा,लघिमा,प्राप्ति,प्राकाम्य,ईशित्व और वशित्व - को देने वाली हैं। शास्त्रोक्त विधियों से माँ की उपासना करने वाले साधक को सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता। उसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर विजय करने की शक्ति आ जाती है।

माँ के चरणों का सानिध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ होकर उनकी उपासना करनी चाहिए।

तो माँ के भक्तो, इस प्रकार माँ के नवों रूपों की कथा यहीं समाप्त होती है। जिस तरह आज तक आपने अपनी श्रद्धा बनाए रखी है आगे भी बनाए रखें, कल माँ का विसर्जन होगा। तब तक आप आप ये भजन सुने और अपने चित्त को संयमित करें,माँ आपकी रक्षा करें.


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Friday, October 19, 2007

"महागौरीति च अष्टमं"


या देवी सर्वभूतेषु,
शांति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः॥

माँ के भक्तो,
नमस्कार! माँ आप सब का कल्याण करें।

माँ की पूजा करते हुए आप हम सब भक्त अन्तिम दौर में पहुंच चुके हैं। आज माँ की पूजा का आठवां दिन है, अर्थात अष्टमी है।माँ के पट खुल चुके हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ माँ के दरबार में पहुँचनी शुरू हो गयी है। चारों और एक भक्तिमय वातावरण नजर आ रहा है।

आज माँ के आठवें स्वरूप "महागौरी" की पूजा की जाती है, अर्थात "महागौरीति च अष्टमं" .
माँ का वर्ण पूर्णतः गौरवर्ण है.इनके समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। माँ के ऊपर का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले दाहिने हाथ मी त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू है तथा नीचे का हाथ वरमुद्रा में है। माँ की मुद्रा अत्यंत शांत है और ये वृषभ पर आरूढ़ हैं।

माँ महागौरी की कृपा से साधक को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सैट की और प्रेरित कर असत का विनाश करती हैं। माँ का ध्यान स्मरण ,पूजन -आराधन भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है।

आइये भक्तजन, आज मैं आपको शास्त्रीय भजनों से इतर एक फिल्मी भजन सुनवाने जा रहा हूँ जिसमें वही भक्ति समाहित है।हालांकि ओरिजनल ट्रैक नहीं है,पर आप आनद उठाएं. आइये सुने और माँ की भक्ति में डूब जाएँ। माँ के दरबार चलें और माँ के दर्शन करें।

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Wednesday, October 17, 2007

"षष्ठं कात्यायनी च "


या देवी सर्व भूतेषु
दया रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै,नमस्तस्यै,नमो नमः ॥

नवरात्र के छठे दिन माँ के छठे स्वरूप की पूजा होती है । माँ का यह स्वरूप "कात्यायनी" कहलाता है अर्थात "षष्ठं कात्यायनी च" ।
माँ का स्वरूप अत्यंत ही दिव्य है.इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है. माँ सिंह पर सवार हैं. माँ के चार हाथ हैं,इनके दो हाथ वर मुद्रा में भक्तों को आशीष देते हैं, एक हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है तथा दूसरे में खड्ग है।
माँ कात्यायनी की उपासना कराने से साधक को बड़ी सरलता से धर्म,अर्थ,काम ,मोक्ष चारों फलों की प्राप्ती हो जाती है.इस लोक में रहकर भी वह अलौकिक तेज से और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके रोग , शोक, संताप ,भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
रोगशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान सकलान्भीष्ठान।
त्वामश्रितानां न विपन्नाराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्र्यातां प्रयन्ति।
देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण मे गए पुरुष दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।

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Tuesday, October 16, 2007

माँ का पंचम अवतार " स्कन्दमाता"


या देवी सर्वभूतेषु
मात्रृरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै...नमस्तस्यै..नमस्तस्यै...नमो नमः ॥

भक्तो, माँ की पूजा करते हुए हम आज पाँचवे दिन आ पहुंचे हैं। नवरात्र के पाँचवे दिन माँ के पंचम स्वरूप की पूजा की जाती है।

माँ के पंचम स्वरूप को "स्कन्दमाता" कहा जाता है। स्कन्दमाता अर्थात भगवान् स्कन्द कुमार की माता। स्कन्द कुमार को "भगवान् कार्तिकेय " भी कहा जाता है। माता के पाँचवे विग्रह मे भगवान स्कन्द कुमार माता के गोद में बैठ हुए हैं।

माँ की चार भुजायें हैं। माता के उपर के दोंनो हाथों मे कमल-पुष्प सुशोभित है। नीचे के दाहिने हाथ से माता स्कन्द कुमार को गोद मे लिए हुई हैं तथा बांये हाथ वरमुद्रा के रुप में है।

माँ स्कन्दमाता की पूजा से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं.इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है।

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Monday, October 15, 2007

"कूष्माण्डेति चतुर्थकम"


या देवी सर्वभूतेषु,
विद्या रुपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै.. नमस्तस्यै..नमस्तस्यै... नमों नमः।

माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम "कूष्माण्डा" है।अपनी मन्द मुस्कान के द्वारा उन्होनें इस ब्रह्माण्ड की रचना की अतः उन्हें "कूष्माण्डा देवी" के नाम से जाना जाता है। माँ सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं था। इन्हीं के तेज से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं.

माँ की आठ भुजायें हैं और ये अष्टभुजा भी कहलाती हैं.इनके सात हाथों में कमण्डलु, धनुष, बाण,कमल-पुष्प,अमृत-कलश,चक्र तथा गदा है। माँ के आठवें हाथ में सिद्धि - निधि देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

माँ कूष्माण्डा की आराधना से भक्तों के सारे रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं,इनकी भक्ति से आयु , यश, बल तथ आरोग्य की वृद्धि होती है।

भक्तों, आज मैं आपको अपने पसंद की ऎसी भक्ति रचना सुनवाने जा रहा हूँ जिसे जब भी मैंने दशहरे के दिनों में सुना, एक अलग ही दुनिया में पहुच जाता था। जब भी मैं अपने पुराने शहर,तारापुर, में रहा हरेक दुर्गा पूजा में इसे सुनता था जो वहीँ पास के मंदिर में बजता रहता था। मैं बात कर रहा हूँ "दुर्गा सप्तशती" के पाठ की। दूर से आती हुई "पं सोमनाथ शर्मा" की गूंजती हुई आवाज़ मेरे दिल-दिमाग पर छा जाती थी। हालांकि मुझे परसों तक पता नहीं था कि वो आवाज़ जिसे मैं बचपन से जानता हूँ वो किनकी है,पता तब चला जब कल मैंने पहली बार उसे खरीदा। पूरा तो नहीं पर मेरा अत्यंत पसंदीदा भाग मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ। पहले क्लिप में संस्कृत में और बाद में उसका हिंदी अनुवाद है.

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Sunday, October 14, 2007

भगवती का तीसरा स्वरूप " चंद्रघण्टा"


या देवी सर्वभूतेषु
श्रद्धा रूपेण संस्थिता:,
नमस्तस्यै... नमस्तस्यै... नमस्तस्यै... नमो नमः।


माँ के प्रिय साधकगण,
या सबका कल्याण करे !
आज माँ की आराधना का तीसरा दिन है। आज के दिन हम माँ के एक और अलौकिक स्वरूप की पूजा करते हैं.
कल्याण कारिणी माँ की तीसरी शक्ति का नाम "चंद्रघण्टा" है,अर्थात " तृतीयं चंद्रघण्टेति "। माँ इस स्वरूप में परम शांतिदायिनी और कल्याणकारिणी हैं। चूंकि माँ के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है इसलिये माँ के इस विग्रह रुप को "चंद्रघण्टा देवी " कहा जाता है। माँ स्वर्ण के समान चमकीले शरीर वाली हैं, इनके दस हाथ हैं और ये त्रिनेत्रों वाली हैं।माँ सिंह पर विराजमान हैं. माँ के आठ हाथों में नाना प्रकार के आयुध शोभायमान हैं। अन्य दो हाथ भक्तों को वर देने की मुद्रा में हैं।माँ के घण्टे सी भयानक चंड-ध्वनि असुर प्रकम्पित रहते हैं।

या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृताधियाम हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभावस्य लज्जा
तं त्वां नताः स्म परिपालय देवी विश्वं।।
जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रुप से, पापियों के यहाँ दरिद्रता रुप से,शुद्ध अन्तः करण वाले पुरुषों में ह्रदय मे बुद्धि रुप से ,सत्पुरुषों में श्रद्धा रुप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जा रुप से निवास करती हैं,उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं.देवी! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये.
भक्तों, आइये आज भी एक भजन सुनें और माँ की आराधना करें -

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Saturday, October 13, 2007

"द्वितीय ब्रह्मचारिणीं"


या देवी सर्वभूतेषु,
विद्या रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः.


माता के भक्तो ,
सप्रेम नमस्कार!
कल आपने माँ की पूजा का विधिवत शुभारंभ किया।माँ सबको शक्ति दें कि हम उनकी पूजा निर्बाध रुप से पूरे नवरात्र करते रहें।

"प्रथमं शैलपुत्री" के बाद माँ का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है अर्थात " द्वितीयं ब्रह्मचारिणीं "।
माँ श्वेत धवल वस्त्रों मे अत्यंत तेजोमयी प्रतीत होती हैं। उनके दाहिने हाथ मे माला और बांये हाथ में कमंडलु सुशोभित है। वे धरती पर खड़ी हैं।
माँ का यह रुप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य मे तप,वैराग्य ,सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। माँ की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।
सर्वमंगलमाङ्ल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ,
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तु ते।
नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान कराने वाली मंगलमयी हो। कल्याणकारिणी शिवा हो। सब पुरुषार्थ को सिद्ध करने वाली , शरणागत वत्सला , तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है.
तो भक्तों, आइये आज हम फिर से माँ की आराधना मे जुट जाएँ ।
माँ हम सब भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करें।
वातावरण को भक्ति से ओतप्रोत करने के लिए मैं आज फिर आप सबों की ओर से माँ को एक भजन समर्पित करता हूँ।

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Friday, October 12, 2007

माँ का प्रथम स्वरूप " शैलपुत्री"


"या देवी सर्वभूतेषु,
शक्ति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः।"

माँ के भक्तो, आज से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए हैं अर्थात माँ दुर्गा की उपासना का महायज्ञ। आज माँ के प्रथम स्वरूप "शैलपुत्री" की आराधना की जाती है। शैल यानी पर्वत। माँ का प्रथम स्वरूप है पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री अर्थात पार्वती का।


माँ के दो हाथ हैं, दाहिने हाथ में माँ त्रिशूल तथा बायें हाथ में कमल-पुष्प धारण करती हैं। माता वृषभ पर आरूढ़ हैं। उनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित हो रहा है।

देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मात्तर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वामीश्वरी देवि चराचरस्य॥
मैंने अपने पिछले पोस्ट में आपसे अनुरोध किया था कि आप भी भक्तिमय हो जाएं और आज से शुरू होने वाले दस दिवसीय महायज्ञ को और भी भक्ति तथा शक्ति से मनाएं। मैं हर रोज आपको देवी के अलग अलग रूपों से अवगत कराने की अपने स्तर से भरपूर कोशिश करूंगा और चाहूंगा कि आप भी थोड़ा समय दें. साथ - साथ मैं हर रोज आपके लिए लिए एक माँ को समर्पित भक्ति गीत भी प्रस्तुत करुंगा। तो आज प्रस्तुत है ये भजन , आप सुने, सुनाएँ और अपने आस पास के वातावरण को भक्तिमय कर दें। मैं भी जा रहा हूँ माँ की आराधना के लिए क्योंकि मेरी मम्मी दुर्गा शप्तशती का पाठ आरंभ कर चुकी हैं.

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Thursday, October 11, 2007

आराधना शक्ति की.....


"या देवी सर्वभूतेषु,
शक्ति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः।"

शक्ति की आराधना का दस दिवसीय महाप्रयोजन (नवरात्र)कल यानी शुक्रवार , 12 अक्तूबर 2007 , से शुरू हो रहा है। माता फिर से अपने भक्तों को अपने आशीष देने चली आ रही हैं। हर बार आती हैं, दुनिया बदलते हुए देखती हैं, अच्छे कामों से खुश होती हैं, भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं.

आज नवरात्रे की पूर्व संध्या पर मैं अपने यादों के गलियारे में जा रहा हूँ. जबसे मैंने होश संभाला था, अपने घर में भक्तिमय वातावरण हमेशा पाया। उस समय भी जब मेरी विदुषी दादीजी की छत्रछाया हमारे ऊपर थी और आज भी जब उनकी कमी हमेशा महसूस होती है तब भी। उस समय जब गाँव की लड़कियां पढ़ा लिखा कम ही करती थीं, हमारी दादी, स्व आर्या देवी, ने मध्य विद्यालय से उच्च विद्यालय तक scholarship प्राप्त की थीं। हालांकि उनका बाल विवाह हो गया था पर उन्होने मेट्रिक तक पढ़ा था। विद्यालयी शिक्षा से इतर उन्होने रामायण , महाभारत , गीता भी उन्होने ख़ूब पढ़ा था। शायद यही कारण था कि बचपन में हमने उनसे कहानियों के साथ साथ इन महाकाव्यों के उद्धरण भी ख़ूब सुने। उन्हीं दिनों शायद भक्ति का बीज मेरे मन में प्रस्फुटित होने लगा था। मम्मी - पापा का सुबह शाम -
"या देवी सर्वभूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता:,नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः।" और गायत्री मन्त्र का पाठ मुझे अच्छा लगने लगा था।
धीरे- धीरे मैं बड़ा होता गया, भक्ति की छाप और भी गहरे चली गयी। हम लोग दादी को छोड़कर मम्मी पापा के साथ गाँव से दूर शहर , जी हाँ, हमारे लिए वो हमारा शहर ही था, आ गए स्कूली पढ़ाई करने के लिए। वहीं थोड़ी दूर पर एक मंदिर था, बल्कि आज भी है, सुबह से ही भक्ति गीतों के कैसेट बजने लगते थे । हमारे पापा हमें ब्रह्म मुहूर्त में ही उठा देते और हमारे कानों मे पड़ता ,रस घोलता भजन सम्राट "अनूप जलोटा जी" और "हरिओम शरण " जी के भक्ति गीत. मन , वातावरण सब भक्तिमय हो जाता.

क्या आज आपका मन नहीं कर रहा भक्तिमय होने का? नवरात्रे कल से शुरू हो रहे हैं , आइये अपने आप को कल के लिए तैयार करें. आइये आज मैं आपको एक पसंदीदा भजन सुनवाऊं जिसने पहले पहल मुझे अनूप जलोटा जी की आवाज़ से मेरी पहचान कराई. और मेरे जेहन मे इसकी छाप अभी भी है और हमेशा रहेगी .

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Wednesday, October 10, 2007

सबके प्रिय जगजीत ...


दो दिन पहले एक अख़बार में छोटी सी खबर पढ़ी ... " जगजीत सिंह पक्षाघात के कारण अस्पताल में भर्ती।" साथ मे थोड़ी सी विवेचना भी थी उस खबर की। पढ़ कर जी धक् से रह गया। एक चिकित्सक होने के कारण मन में चंद तरह के सवाल उठने लगे। किस तरह का अटैक है? एक तरफ का paralysis है या .... ? चेहरा और आवाज़ भी affected हुए हैं क्या? और भी ना जाने क्या - क्या...
इन्टरनेट पर बैठ कर सर्च करने लगा, उनके बारे में और न्यूज़ .संतुष्टि नहीं हुई।
दिन बीता, समाचार पढ़ा कि paralysis के अटैक की बात तो न्यूज़ चैनलों के द्वारा फैलाई गयी थी।
सबके प्रिय मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह जी अब ठीक हैं और private वार्ड मे स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। मन को एक तसल्ली मिली।
मन कहीँ दूर पीछे चला गया जब जगजीत जी ने अपने मधुर आवाज़ से मेरे कोमल मन पर दस्तक दी थी। ग़ज़ल क्या चीज है मैं तब ये जानता नहीं था। सिर्फ अच्छे गानों पर मन खुश हो जाया करता था। दिल में एक तरह की अलग अनुभूति होती थी उन गानों को सुनकर। तब ये नहीं जानता था कि फलां गायक इसे गा रहे हैं, या फलां संगीतकार की रचना है ये। उन्हीं दिनों मैंने ये ग़ज़ल सुनी थी - "झुकी - झुकी सी नज़र, बेकरार है के नहीं....."
मेरे अन्दर का संगीत प्रेमी मन इस गाने को सुन कर सोचने लगा कि कौन है ये गायक? आवाज़ दिल पर छाने लगी थी। नाम से अनजान मैं रेडियो पर ये जानने की कोशिश करने लगा उस नायाब गायक का नाम .... और आख़िर पता चल ही गया। तब तक और भी उनके गाने मैं सुन चुका था।
पर, आज मैं आपको वही ग़ज़ल सुनाने जा रहा हूँ जिसने मेरे मन पर अब तक कहीँ गहरे निशां बनाए हुए है.....
आइए सुने और भगवान् से ये प्रार्थना करें कि जबतक हमारी जिन्दगी है हम इस आवाज़ को अपने ऊपर यूँ ही बरसता महसूस कर सकें ......

Sunday, October 07, 2007

हमारे पूर्व प्रधानमंत्री...



आज
के दिन मैंने कई पोस्ट्स पढ़े जो केंद्रित थे हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों की प्रिय " दुर्गा भाभी " पर। आज उनके जन्म की १०० वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है. स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को कोई भुला नहीं सकता है,बशर्ते जिन्हें वो याद हों। जिन्होंने उनके बारे मे जानने की जहमत ही नहीं उठाई वो क्या याद करेंगे उन्हें। अंग्रेजों की आंखों मे धूल झोंक कर जिस तरह उन्होंने शहीदे-आज़म भगत सिंह को कलकत्ता पहुंचाया वो वाकई जंगे-आजादी की अमिट कथा है। मैं उन्हें नमन करता हूँ.

इन सबसे इतर , मैं आज एक ऎसी शख्सियत के बारे में बात करने जा रहा हूँ जिनका नाम लेने के साथ ही जेहन में एक तस्वीर उभरती है , उस भारत की तस्वीर ,जिसमें एक ओर सीमाओं पर पहरा देते हमारे वीर सैनिक हैं तो दूसरी ओर पूरे देश को अपने पसीने से सिंचित करते हुए खेतों में काम करते मजबूत किसान हैं।
जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री स्व लाल बहादुर शास्त्री जी की। "जय जवान , जय किसान" का नारा देने वाले हमारे पूर्व प्रधानमंत्री जिनकी जयंती अभी हाल ही में , 2nd october को मनायी गई। मैं ये नहीं कह रहा कि आपको ये तारीख मालूम नहीं है। सभी जानते हैं कि 2nd october को हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती मनायी जाती है. परंतु, क्या आप महसूस करते हैं कि जिस तरह एक बडे वट वृक्ष की छाया मे दूसरे पौधे को पनपने का मौका नहीं लगता, उसी तरह, हम अपने पूर्व प्रधानमंत्री की जन्मतिथि को भूलते जा रहे हैं। मुझे तो कमसे कम इस बार ऐसा ही लगा। हालांकि मेरे पास केबल टीवी नहीं है तो मैं ये नही कह सकता कि उस पर कितना कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया किन्तु जहाँ तक दूरदर्शन और आकाशवाणी की बात है जो कि स्वयं को सरकारी चैनल कहते नही थकते हैं, उसकी स्व लाल बहादुर जी के प्रति निष्क्रियता मेरी समझ से बाहर है। दोनों ने सिर्फ दो पंक्ति के एक समाचार तक सीमित कर दिया इस सपूत को। अखबारों मे भी उनके लिए जगह नहीं थे। सम्पादकीय तो दूर की बात है।

क्या ये सोचने की बात नहीं है?
सोचें और हमें लिखें.

चुनावों के बाद ...

शायद वो सर्दियों की ही एक सुहानी सुबह थी....
पड़ा था मैं भी नाजुक से पत्तों पे ओस कि एक बूँद की मानिंद...
वहीं बगल में ,
सुन रहा था शेर की सारी बातें॥
और पास में वो पोल खोलक यन्त्र का नया version भी तो था.....
तभी सूं-सूं की आवाज़ मैंने महसूस की।
शेर की गुर्राहट ? पर शेर तो खामोश था ...
प्यार मेमने से जता रहा था।
शायद मुँह में आते लार को,
अन्दर ही गटक जा रहा था....
मैंने सुना, " बेटा, जिंदा रह, जब तक चुनाव होते हैं,
खुश रह, जबतक चुनाव होते हैं ,
क्योंकि तुम्हें ही तो निरावरण हो जाना है,
हमारे दरबारियों के सामने ,
सदेह नहीं वरन...
टुकड़ों में,
प्लेटों मे सज जाना है.....

Thursday, October 04, 2007

चक्रधर जी जाल में...

"अहा!जिंदगी" में पढ़ा ..... जाना ....
अपनी अल्पज्ञता पर क्षोभ भी हुआ....
पता चला ...
चक्रधर जी भी जाल (नेट) में फँस ही गए....
तभी उनके पोल खोलक यन्त्र का नया version ....
मेरे computer पर spyware की भांति आ धमका।
मैंने सोचा ,
लगता है ब्लॉग पढाकुओं की जोरदार फरमाइश पर...
चक्रधर जी ओरिजनल की पायरेटेड virsion फ्री बाँट रहे हैं ....
खुद तो कभी अमृत कभी जहर का घूंट तो पिया ही,
हमे भी करेले का रस चखा रहे हैं....

Wednesday, October 03, 2007

अमीन सयानी विविध भारती पर

कल रात नौ बजे प्रसिद्ध उदघोषक अमीन सयानी साहब विविध भारती पर प्रस्तुत करेंगे "स्टार जयमाला"। सुनना ना भूलें। कल रात नौ से दस।

विविध भारती की ५० वीं वर्षगांठ

आज विविध भारती की ५० वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है.... और मैं , निरा बेवकूफ अभी रात के ९:३० बजे सुन रहा हूँ प्रोग्राम " विविध भारती के ख़जाने से" । महसूस कर रहा हूँ कि मैंने दिन भर क्या काफी कुछ miss किया। अभी के प्रोग्राम में ममता सिंह जी और कमल शर्मा जी वसी साहब का interview ले रहे हैं ... मुझे लग रहा है कि ये वसी साहब शायद विविध भारती के पुराने announcer अहमद वसी साहब ही हैं। मैं कन्फर्म होने कि कोशिश कर रह हूँ। जी हाँ ... अभी सारे लोग आ गए है... अमरकांत जी, यूनुस भाई, कमल जी और ममता जी तो थीं ही... अभी मुझे पता लगा वो अहमद वसी साहब ही हैं.

Tuesday, October 02, 2007

ब्लॉग और कादम्बिनी

"कादम्बिनी" ने बिल्कुल नए जगत से हाथ मिलाते हुए साइबर कि दुनिया मे घुसपैठ बनायी है जिसका ताजा उदाहरण है अक्तूबर अंक में प्रकाशित आवरण कथा - ' ब्लॉग हो तो बात बने '। अपने सारे ब्लॉग को पूरी दुनिया के सामने कैसे रखें , मैंने आज ही जाना , और ये संभव हुआ सिर्फ " कादम्बिनी " के लेख से। पत्रिका की पूरी टीम धन्यवाद की पात्र है.