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Monday, August 04, 2008

चलें बाबा के द्वार... चलें देवघर नगरिया.. बोल - बम !

जय शिव शंकर!
दोस्तो,
यदि आपने मेरी कल की पोस्ट पढ़ी होगी, तो आप ने देखा होगा कि मैने एक बात शुरुआत में ही लिखी थी.. "......... पता नहीं कितने रूपों में सावन हमारे आस पास बिखरा पड़ रहा है. हर कोई अपने अपने तरीके से इसे समेटने में लगा है. ........आशा है हमेशा की तरह एक बार फ़िर आप मेरे साथ यादों के सफ़र के हमराह होंगे."

मैं झारखंड राज्य स्थित देवघर में अवस्थित बाबा भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग स्वरूप बाबा बैद्यनाथ, बाबा रावणेश्वर के बारे में चर्चा कर रहा था. आपने देखा कि किस तरह बाबा के इस स्वरूप की स्थापना हुई. आज तीसरी श्रावणी सोमवारी के पावन अवसर पर मैं आपको ले चल रहा हूँ इसी काँवरिया मार्ग  पर जिसपर चलकर भक्तगण 105 km का दुरूह सफ़र पैदल तय करते हैं. और इसी से जुड़ी मेरी वो बचपन की यादें, जिनका हमराह मैं आपको बनाना चाह रहा हूँ. आशा है मेरे वे बिछड़े साथी जो दो महीने पहले मेरी blog यात्रा के रुकने पर मुझसे दूर हो गये थे फ़िर आ मिलेंगे.

बहरहाल मैं बात कर रहा था काँवरिया भक्तों की. भक्तगण दूर दूर के प्रदेशों से विभिन्न साधनों के द्वारा पहले सुलतानगंज पहुँचते हैं. सुल्तानगंज, बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित एक छोटा सा शहर है. जो देश से सड़क और रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. यहीं बहती है उत्तरवाहिनी गंगा. यहाँ इस पतित पावनी उत्तरवाहिनी गंगा का अपना एक विशेष महत्व है. कहते हैं, भगवान राम ने यहीं काँवरिया वेश में गंगाजल भरकर पैदल राह तय कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पण किया था. काँवर उठा कर ले जाने की प्रथा तभी से शुरू मानी जाती है.

                                                   India Kanwarias Walk

उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर पंडे श्रद्धालु भक्तों को संकल्प कराते हैं, श्रद्धालु पात्रों में जल भरते हैं और कंधे पर काँवर रख कर आकाश गुँजित उदघोष करते हैं - "बोल बम" और रवाना हो जाते हैं एक भक्तिमय लंबे पथ पर जिसपर लगभग तीन दिनों के सफ़र बाद वो मंजिल आनी है जब बाबा के दर्शन होंगे, एक संकल्प पूरा होगा. पूरे सावन महीने तक रोज लाखों की तादाद में काँवरियों का जत्था यहाँ से बाबा नगरी के लिये प्रस्थान करता है. एक दूसरे का उत्साह बढ़ाते काँवरिया चलते जाते हैं, बढ़ते जाते हैं. अगर मैं कहूँ कि काँवरिया नहीं चलते वरन काँवरियों का एक रेला सा चलता है तो ज्यादा सटीक होगा. दूर तक जहाँ तक भी नज़र जायेगी सिर्फ़ गेरुआ रंग की एक कतार सी ही दिखेगी पूरे काँवरिया पथ में.

बोल बम.. बोल बम. बोल बम.. बोल बम.
बाबा नगरिया दूर है, जाना जरूर है.. भैया बम, बोलो बम, माता बम बोलो बम, चाची बम , बोलो बम.
सारे काँवरिया एक दूसरे को बम कह कर संबोधित करते है.नाचते गाते काँवरिया आगे की ओर बढ़ते जाते हैं.

इस 105 किमी के सफ़र में कई पड़ाव आते हैं जब काँवरिया रुकते हैं, सुस्ताते हैं, अपनी थकान मिटाते हैं.सुल्तानगंज से लेकर बाबाधाम तक काँवरिया पथ के दोनों ओर खाने पीने की स्थाई और अनगिनत अस्थाई दुकाने हर कदम पर आपको मिलेंगी. अब इन दुकानों में खाने की क्वालिटी पर बहस हो तो वो एक अलग मुद्दा हो जायेगा. जगह जगह medical camp भी लगे होते हैं. थॊड़ी देर इनकी सेवायें लेने के बाद निकल पड़ते हैं आगे के सफ़र पर बोल बम की गुंजायमान उदघोष के साथ.  इन्हीं कई पड़ावों में एक पड़ाव है " तारापुर" जहाँ का आपका यह दोस्त रहने वाला है. सुलतानगंज के बाद मुख्य पडावों मे हैं- मासूमगंज, असरगंज, रणग्राम और तब तारापुर. लगभग 20 किमी के बाद यह पड़ाव आता है तो अधिकतर काँवरिया यहीं रुकना पसंद करते हैं. तारापुर की आँखों देखी विवरणी मैं अपने अगले पोस्ट में दूंगा जब आप मेरे साथ पूरे तारापुर के काँवरिया पथ का सजीव वर्णन आपके सामने रखूंगा. फ़िलहाल आगे चलें...

तारापुर के बाद 7 किमी पर आता है रामपुर, एक दूसरा अति महत्वपूर्ण पड़ाव. यहा लगभग सभी काँवरिया रुकते हैं क्यूँकि अधिकतर काँवरियों के लिये यहाँ लगभग रात हो जाती है और आगे का सफ़र थोड़ा मुश्किल भरा हो जाता है.

दूसरे दिन सवेरे उठकर नित्य क्रिया से निवृत हो अपने काँवर पुन: कंधे पर टांग कर बम आगे की ओर निकल पड़ते हैं. यह भी नियम है कि काँवर को पूरे सफ़र के दौरान कभी भूमि स्पर्श नहीं होने देना है,सो काँवर को विश्र्ष प्रकार के बनाये गये stands पर ही रखा जाता है. इस दौरान कुत्ते अर्थात भैरो बम का स्पर्श भी वर्जित है सो सारे बम उससे बचते हुए चलते है. जब भी काँवर अपने स्थान से पुनः उठाया जाता है तो पहले पाँच बार कान पकड़ कर उठक बैठक लगाना भी अनिवार्य है. पूरे यात्रा के दौरान श्रृंगार प्रसाधनों का उपयोग भी वर्जित है.विशुद्ध शाकाहारी भोजन करते हुए और इन सारे कठिन नियमों का पालन करते हुए लोग बाबा के दरबार पहुँचते हैं.

रामपुर के बाद आता है कुमरसार फ़िर जिलेबिया मोड़. कुमरसार से आगे बढ़ते ही एक नदी पार करनी होती है, कभी कभी नदी का बहाव इतना तेज होता है कि सारे काँवरिया एक दूसरे को पकड़ कर चलने को बाध्य होते है. जिलेबिया मोड़, जैसा नाम से ही प्रतीत होता है, पहाड़ियों पर रास्ते हैं और ये मानो जलेबी के जैसे घुमावदार. आगे आता है सूईया पहाड़, यहाँ के पत्थर मानो सूई की तरह पाँवों में गड़ जाते हैं. पर बाबा के भक्तों को ऐसी कोई भी मुसीबत नहीं रोक नहीं सकती. पैरों में पड़े छाले, बहता खून भी मानॊं उनके उत्साह को डिगा नहीं पाता है. हरेक बाधा का और तेज हुँकार से काँवरिया जवाब देते हैं... बोल बम का नारा है.. बाबा एक सहारा है.

सूईया से कटोरिया, इनाराबरन, गोड़ियारी होते हुए काँवरिया बम आखिरकार पहुँच जाते हैं दर्शनियाँ. दर्शनियाँ आते ही बाबा के भक्तों की खुशी और उत्सह दूना हो जाता है क्योंकि यहाँ से ही बाबा के मंदिर की उपरी बाग नजर आने लग जाता है.  काँवरियों का रेला सा उमड़ रहा है. हर तर्फ़ गेरुआ वस्त्रों में लिपटे बम ही दिखाई दे रहे है. अब बस एक ही किलोमीटर तो रह गया है बाबा का नगर. लो बाबाधाम तो हम आ पहुँचे हैं. पहले शिवगंगा में स्नान कर लें फ़िर लाईन में लग कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पण करना है.

                                         deoghar_temple2

अहा! कितना मनोरम दृश्य है. बोल..बम हर हर महादेव , ऊँ नमः शिवाय की ध्वनि से चहुँलोक गुँजायमान हो रहा है. लोग बब के मंदिर की प्रदक्षिणा कर मंदिर में बाबा पर जलाभिषेक कर रहे है.

बाबा बैद्यनाथ की जय... हर हर.. बम बम..

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अभी बाबा का प्रसाद लेना तो बाकी ही है. चलें बाहर, देखें कितनी दुकाने सजी हुई हैं. यहाँ से उत्कृष्ट पेड़े, मकुनदाना और चूड़ा (चिवड़ा) प्रसाद के रूप में लें. गले में डालने के लिये मालायें( बद्धियाँ) लें, सुहागिनों के लिये सिंदूर भी ले लें.
अब जाकर हमारा संकल्प पूरा हुआ... अब सभी अपने अपने घरों की ओर प्रस्थान करें.
जय शिव शंभु!

Sunday, August 03, 2008

सावन का पावन महीना और भगवान भोलेनाथ के द्वारे जाते काँवरिया.....

आजकल सावन का  महीना चल रहा है और बारिश की फ़ुहारें हम सभी को दिलो दिमाग तक भिगोये जा रही हैं. कहीं सावन के झूले पड़ रहे हैं तो कहीं सावन के बादलों को विकलता से पुकारा जा रहा है. कहीं सावन का गुणगाण किसी शेरो शायरी से किया जा रहा है तो कहीं सावन से किसी को कई गिले शिकवे हैं. कहीं गाड़ी में गुलाम अली साहब सावन की गज़ल गा रहे हैं तो कहीं ज़िला खाँ सावन को अपने सुरों में सजा रही हैं.

....... पता नहीं कितने रूपों में सावन हमारे आस पास बिखरा पड़ रहा है. हर कोई अपने अपने तरीके से इसे समेटने में लगा है. तो मैने सोचा कि मैं सावन के किस रूप को अपने दामन में भर लूँ. ज्यादा सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्यूंकि सावन से जुड़ी बहुत ही आस्थापूर्ण याद मेरे जेहन में बसी है और आज मैं उसी याद को आपसे बाँटना चाह रहा हूँ, आशा है हमेशा की तरह एक बार फ़िर आप मेरे साथ यादों के सफ़र के हमराह होंगे.

                                             shiva2

हमारे साथियों को पता ही होगा कि झारखंड राज्य स्थित देवघर में भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है जहाँ देश (और यहाँ तक कि विदेशों से भी) के कोने कोने से लोग आकर शिवलिंग पर गंगा जलाभिषेक करते हैं. भगवान भोले शंकर यहाँ बाबा बैद्यनाथ के नाम से विराजते हैं. इसी कारण देवघर को बाबा बैद्यनाथ धाम या बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है. बाबा भोले नाथ यहाँ भगवान रावणेश्वर के नाम से भी ख्यातिनाम हैं. इन नामों के  पीछे भी कथाएँ प्रचलित हैं.

                                              temple1

प्राचीन कथा यह है कि जब लंकाधिपति रावण को यह लगा कि भगवान शिव के लँका में प्रतिस्थापित हो जाने से उसका राज्य बिल्कुल सुरक्षित हो जायेगा तो उसने कैलाश पर्वत पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और भोलेनाथ ने अपने शिवलिंग को उसे दे दिया पर साथ ये भी निर्देश दिया किया कि अगर लँका से पहले किसी भी जगह इस शिवलिंग को जमीन पर रखा तो वह वहीं स्थपित हो जायेगा और फ़िर उसे ले जाना संभव नहीं रहेगा.  देवताओं में चिंता बढ़ गयी. उन्होंने वरुण देव से आग्रह किया और रावण को तीव्र लघुशंका हुई. उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और लघुशंका करने लगा. इस तरह शिवलिंग देवघर में उसी स्थान पर प्रतिष्ठित हो गया. इस तरह रावणेश्वर नाम से भगवान जाने गये. कालांतर में बैद्यनाथ नाम के एक भील ने इसे पूजा जिससे यह बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना गया, ऐसा माना जाता है.

बाबा बैद्यनाथ का यह शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग है. शिव महापुराण में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंग का विवरण इस प्रकार है..

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोड्कारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशड्करम् । सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे । हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥
एतानि ज्योतिर्लिड्गानि सायंप्रातः पठेन्नरः । सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥

ऐसी मान्यता है कि अगर उत्तरवाहिनी गंगा से जल लाकर बाबा के ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया जाये तो बाबा विशेष प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हमेशा भक्त पर बनी रहती है. सो प्रत्येक सावन के महीने में बाबा के भक्त देश और विदेशों के कोने कोने से आते हैं , सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा में पवित्र स्नान करते हैं, अपने पात्रों में जल लेते हैं और काँवर कांधे पर टांग कर रवाना हो जाते हैं बाबा भोले नाथ के द्वारे अपनी भक्ति निवेदित करने, अपने लाये जल को बाबा को समर्पित करने.

शिवभक्त काँवरिया उत्तरवाहिनी गंगा, सुलतानगंज से बाबाधाम,देवघर तक का 105 km का दुरूह सफ़र पैदल ही नंगे पाँव तय करते हैं. बोल बम- बोल बम, ऊँ नमः शिवाय का रट लगाते काँवरिया एक दूसरे को साहस दिलाते बढ़ते जाते हैं......

आइये बाबा का भजन करें..

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भक्ति का ये सफ़र कल भी जारी रहेगा. चूँकि ये सफ़र बहुत लंबा है सो आप सब आशा है भगवान शिव की की आराधना में सावन के तीसरे सोमवार को भी साथ रहेंगे. श्रावणी सोमवारी बाबा को विशेष प्रिय है और हम अपनी आराधना पूरी करेंगे..... जय बाबा बैद्यनाथ.