आज शिवरात्रि के पावन मौके पर मैं आपको ले चलता हूँ बाबा केदारनाथ के द्वार. भोलेनाथ बाबा केदार का शीतकालीन आवास उत्तराखंड के ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर जहाँ भगवान साल के छः महीने विश्राम करते हैं.
मौका था एक विशेष हृदय रोग जांच शिविर जो हमारे अस्पताल , भारत हार्ट इंस्टीट्यूट , की ओर से आयोजित किया गया था. देवभूमि उत्तराखंड में पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है पांच प्रयागों में से एक रुद्रप्रयाग. यहाँ मन्दाकिनी और अलकनंदा नदियों का मिलन होता है और आगे अलकनंदा के नाम से बहती जाती है. अगर हम रुद्रप्रयाग से और ऊपर मंदाकिनी नदी के साथ साथ चलते हैं तो आता है अगस्त्यमुनि , जहाँ रामायण काल में महर्षि अगस्त्य का आश्रम हुआ करता था. इसी अगस्त्य मुनि में हमने अपना हृदय रोग जांच शिविर लगाया था. मेरे साथ अस्पताल की एक पूरी टीम थी जो मरीजों की पूरी जांच और सहायता के लिए तत्पर थी.
हमने देहरादून सुबह के 10.30 बजे छोड़ दिया था और लगभग 12 बजे हमलोग ऋषिकेश से निकल चुके थे. हमारी होंडा मोबिलियो पहाड़ी रास्तों पर अपनी रफ़्तार से भागी जा रही थी और गंगा मैया हमारे साथ साथ बह रही थी. मेरे आईफोन में गाना बज रहा था - मानो तो मैं गंगा माँ हूँ.. ना मानो तो मैं बहता पानी.
हमारा पहला पड़ाव था देवप्रयाग के पास तीन धारा, जहां हमने लंच किया और देवप्रयाग को देखा. देवप्रयाग -पाँच प्रयागों में वो प्रयाग जहां से गंगा वास्तव में गंगा बनकर नीचे उतरती हैं. जी हाँ... यहाँ पर संगम होता है अलकनंदा और भागीरथी नदियों का जो संगम के बाद गंगा कहलाती हैं. नीचे देखें इस पवित्र प्रयाग को , कैसे दो रंग की नदियां मिल रही हैं. जो ज्यादा काली है वो अलकनंदा है...
रुद्रप्रयाग पहुँचते पहुँचते शाम ढल चुकी थी। वहां से हम अगस्त्य मुनि से पहले तिलवाड़ा में होटल के अपने कमरों में दुबक गए. ठंडक भी अपना जोरदार अहसास दिला रही थी. 6-7 डिग्री तापमान हुआ रखा था.
दूसरा पूरा दिन हमने अपने मरीजो को दिया। दूर दराज के क्षेत्रों से चल कर मरीज आये थे , दूर पहाड़ों से.. अपने अलग अलग रोगों का निदान पाने. कोई माताजी ठेठ गढ़वाली बोल रही हैं... कोई दिक्कत नहीं.. बहुत सारे वॉलेंटियर्स लगे हुए हैं.. मरीजों को डॉक्टर तक पहुँचाने में. और डॉक्टर को उनकी बोली समझाने में भी. दिन भर में लगभग 300 मरीजों को मैंने देखा.. मैं अपनी टीम का तहे दिल से शुक्रिया अदा करूँगा जिन्होंने उन सारे 300 मरीजों की BLOOD PRESSURE , BLOOD SUGAR की जांच की और साथ ही सारे लोगों की ECG भी निकाली. बहुत सारे लोगों की दुआएं हमने लीं और हमने धन्यवाद किया वहां उन कर्मठ कार्यकर्ताओं को जिन्होंने इतनी बखूबी से इस mega Camp को सुचारू रूप से संयोजित किया. एक अच्छे dinner के बाद रात 9 बजे हमने उनसे विदा ली और एक बार फिर हम अपने कमरों में थे. नीचे मंदाकिनी अपने वेग से प्रवाहित थी.
अंतिम दिन हमारी टीम ने निर्णय लिया की डॉक्टर साहब को बाबा केदारनाथ के दर्शन कराये जाएँ. और डॉक्टर साहब यह सुनकर भक्ति भाव से परिपूर्ण हो गए. हमारी टीम के एक सदस्य , गजेंद्र जी, जो इसी अगस्त्य मुनि के एक गाँव के मूल निवासी हैं उन्होंने कहा कि मैं आपका गाइड बनूँगा। अंधे को और क्या चाहिए... दो आँखें.
तो सुबह छः बजे हमारी यात्रा फिर शुरू हुई.
हम फिर मंदाकिनी नदी के साथ चलते जा रहे थे. गजेंद्र जी ने बताया कि केदारनाथ की जो आपदा 2013 में आयी थी उसमे यही मंदाकिनी जो अभी इतनी पतली धार में बह रही है , उसने कितना विकराल रूप धारण कर लिया था और अगस्त्य मुनि के आस पास के ही नदी के किनारे सबसे ज्यादा तबाही हुई थी. सचमुच मैं तो यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि जो जगह अभी वीरान दिख है वो कभी 3 -4 मंजिलों के कई होटलों और घरों को अपने अंदर समाये हुए है. नदी ने अपना रास्ता इतना बदल लिया है कि अब वो अपनी जगह से 100-150 मीटर दूर बह रही है. एक ऐसी जगह हमने देखी जहाँ कहा जाता है कि इस कुंड में हजारों हजार बड़ी छोटी गाड़ियां दफ़न होंगी. एक जेसीबी का सिर्फ ऊपरी हिस्सा हमें नदी के पत्थरों के ऊपर दिख रहा था. नीचे के चित्र में बहती मंदाकिनी है जो अभी पहाड़ के इस तरफ बह रही है कभी उस पहाड़ से सट कर बहती थी.
नीचे जहाँ मैं खड़ा हूँ वहां कभी बड़ी इमारतें हुआ करती थीं. नदी सामने वाले पहाड़ को छोड़ कर इस तरफ को तबाह कर गयी.
खैर..... आपदा की इन बातों को सुनते हुए हम साथ साथ आस पास की मनोरम वादियों का आनंद लेते हुए चल रहे थे. दूर पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ से लकदक हुए चांदी सी चमक रही थीं. पहाड़ हमेशा से मुझे अपनी ओर खींचते हैं , आज तो मैं और भी उनके करीब था. धीरे धीरे सूर्य की किरणें बर्फ की चोटियों पर पड़कर उन्हें सुनहरी आभा प्रदान कर रही थीं. धूप अभी सिर्फ ऊपर चोटियों पर ही पहुची थी.
थोड़ी ही देर में हम ऊखीमठ में थे. हम पहुंच गए थे बाबा केदारनाथ के पास. ये मेरी खुशनसीबी थी की बाबा ने मुझे अपने पास बुलाया. ह्रदय रोग शिविर के बहाने हम बाबा भोलेनाथ तक पहुँच पाए.
ऊखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर भगवान् केदारनाथ का शीतकालीन निवास स्थान है जहाँ भगवान् सर्दियों के छः महीने गुजारते हैं. दीपावली के बाद केदारनाथ के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और भगवन की डोली पूरी आस्था के साथ यहाँ ओंकारेश्वर मंदिर में लाकर स्थापित की जाती है. फिर जबतक कपाट नहीं खुलते , बाबा अपने भक्तों को यहीं दर्शन देते हैं. रावल यहाँ के मुख्य पुजारी होते हैं जो शंकराचार्य के वंशज होते हैं.
यहीं मुख्य मंदिर के दूसरी ओर पञ्च केदार का मंदिर है जहाँ पंचकेदार के रूप में भगवान् शिव के पांच लिङ्ग स्थित हैं.
मंदिर के बायीं ओर अंदर माँ काली भी पूजित होती हैं और वहां एक अखंड दीपक प्रज्जवलित रहता है.
हमने पूजा की थालों के साथ मंदिर में प्रवेश किया, रावल ने हमें अच्छे से भगवान के रूप समझाए और पूजा कराई. एक अभूतपूर्व अनुभव हमने मंदिर के गर्भगृह में महसूस किया. लगा कि बाबा के पास आकर जीवन धन्य हो गया।
और इस तरह एक सुहानी सी याद लेकर और भक्ति में सराबोर होकर हम लौटने लगे. रास्ते में रुद्रप्रयाग के भी हमने दर्शन किये.