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Friday, April 04, 2008

आंगन की वो पहली किलकारी

 

माँ-पिता की शादी के तीन - साढ़े तीन साल गुज़र चुके थे. गाँव की बड़ी-बूढ़ी औरतों के बीच कानाफ़ूसियां शुरू हो चुकी थीं. माँ की गोद अब तक हरी नहीं हुई थी. पति पत्नी अपनी विदुषी माँ/सास के कहे अनुसार दवाओं और दुआओं दोनों से आस लगाये हुए थे.

अंततः "माँ तेलडीहा" का आशीर्वाद फ़लीभूत हुआ और उन व्यथित मनों को 5 साल पूरा होते होते सुकून मिला जब उनके आंगन में पहली किलकारी गूंजी थी. तारीख थी यही आज की तारीख यानी 4 अप्रैल. बच्चा बढ़ने लगा. पिता की नौकरी भी लग गयी थी, घर से दूर हो गये थे. पर हफ़्ते - पन्द्रह दिनों पर जब भी घर आते अपना सारा प्यार लुटा जाते. लोग कहते, इ त रोजे बढ़ै छौं हो( ये तो रोज ही बढ़ता जा रहा है). माँ-दादी अपने आँचल में अपने लाडले को छुपा लेतीं.

                                           प्यार की पींग

अपने गोद में लेकर पिता उसे महापुरुषों की कहानियां सुनाते. उसे लेकर अपने खेतों पर चले जाते, मेड़ों पर चलते हुए कहते ... बेटा, कहो... क, ख, ग,......A, B,C,D.... 1,2,3.....

पिता office चले जाते, अपनी जिम्मेदारियां अपनी और बच्चे की माँ पर छोड़ जाते. विदुषी दादी बच्चे को रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करतीं.

                                           हमारी प्यारी मम्मी

पर बच्चा तो बच्चा था, गाँव के शैतान बच्चों के साथ ने उसे बिगाड़ने की भरपूर कोशिश की थी... कुछ हद तक सफ़ल भी हुआ. पर पिता के घर के नजदीक हुए तबादले ने उन गलत मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया.

4 साल के होते न होते 27 मार्च को बच्चे के छोटे भाई ने भी अपना अस्तित्व जाहिर कर दिया था. एक खिलौना उसे मिल गया था. इस नये बच्चे की बढ़वार कम थी, हमेशा गुमसुम सा एक जगह बैठा रहता, अपने में कुछ खेलता रहता. अब किसी को क्या पता था कि सब से ज्यादा नहीं बोलने वाला ये छोटा सा लड़का आगे चलकर एक सफ़ल इंजीनियर बनने जा रहा है और शायद IIM के कठिन interview को पार कर एक सफ़ल मैनेजर भी बन जायेगा.  हां कद का भी और बोलचाल का भी छोटा नहीं रहा वो छोटा भाई.

                                          टूटू

वो छोटा सा बच्चा अपने छोटे भाई को बहुत प्यार करता था, करता है और सदा करता रहेगा.

जब तक छोटा भाई स्कूल जाने के लायक नहीं हुआ था तब तक पिता सिर्फ़ बड़े को ही लेकर अपनी सायकिल पर कभी आगे कभी पीछे बैठा कर स्कूल ले जाते, शाम को दफ़्तर से आते वक़्त उसे फ़िर स्कूल से घर ले आते. जाते आते अंग्रेजी के अनेक शब्दों के अर्थ बच्चे को याद कराते जाते, कभी पिछला शब्द भूल जाने पर एक जोरों की डांट और कभी एक चांटा भी रसीद कर दिया करते उसी तरह सायकिल चलाते हुए ही. पर फ़िर उसी शाम को बारी आती किसी प्रेरक प्रसंग की.

........ चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण.
ऐते पर सुल्तान है, मत चूको चौहान.

                                             Papajee

भाई स्कूल जाने के लायक हुआ, पिता दोनो को अपनी उसी साइकिल पर आगे पीछे बैठा कर स्कूल ले गये. माँ ने छोटे के लिये कपड़े का एक बैग बना कर दे दिया था. शाम को पिता के दफ़्तर से लौटकर आने में देर हो गयी. तीन बजे स्कूल समाप्त होता तो पिता पाँच बजे तक भी नहीं आये. बड़ा भाई छोटे को समझा रहा था. पर तभी स्कूल में रहने वाली कुछ लड़कियों ने कह दिया कि अब पिता नहीं आयेंगे. थोड़े आंसू बड़े की आंखों में भी आ गये पर छोटा देख नहीं पाया. शाम ढलती जा रही थी. घर से स्कूल बहुत दूर है, चलो टूटू( हां, छोटे का नाम यही है) पैदल ही चलते हैं.

बच्चे का पहला दिन और उसे बड़ा भाई पैदल ही चला कर घर लिये जा रहा है. बीच-बीच में पीछे भी देख रहा है , पिता तो नहीं आ रहे. पर नहीं. पिता ने सिखाया है पैदल रोड पर नहीं चलना, गाड़ियां आती जाती रहती हैं. सो, किनारे किनारे दोनों चले जा रहे हैं. छोटा भी उसी उत्साह से चल रहा है. कभी पत्थरों पर पैर पड़ता है तो बच्चा गिर जाता है , बड़ा उसे सम्हालता है. बच्चा गिर जाता है , बड़ा उसे फ़िर सम्हालता है. इस तरह दोनो बच्चे गिरते सम्हलते , एक दूसरे को ढाढ़स बंधाते उस 6 km की दूरी तय कर घर पहुँच जाते हैं. दादी और मम्मी दोनों की करुण गाथा सुनकर उन्हें अपनी छाती से चिपका लेती हैं. 10 मिनट बाद पिता घर पहुँचते हैं और कहानी सुनकर अपना भी माथा पीट लेते हैं.

आज 4 अप्रैल है, वो दिन जिसे मैं कभी नहीं भुला सकता. जिस बड़े बच्चे को आपने देखा वो मैं ही हूं और वो छोटा भाई सुजीत कुमार, IIT ROORKEE से pass out , फ़िलहाल रक्षा मंत्रालय के BHARAT ELEC में कार्यरत और IIM तथा XLRI के interview  के बाद results की प्रतीक्षा में है.

27 march पिछले दिनॊं गुज़र गया और मैं सोचता ही रह गया कि एक पोस्ट अपने प्यारे भाई के लिये लिखूंगा. अच्छा जब शुरुआत की है तो आगे मंजिलें और भी हैं. अगर मैं आगे नहीं लिखूंगा तो हमारी वो छोटी सी बहन भी तो नाराज़ हो जायेगी कि मेरे बारे में नहीं लिखा.

                                          पापा-गुड़िया

खैर, आज अपने जन्मदिन पर मैं अपने तीनों भाई बहन की ओर से अपने प्यारे मम्मी पापा को ये गाना समर्पित करता हूँ. आपने जिस पथ की हमें राह दिखाई हम उस पर अपने क़दम बढ़ा रहे हैं. जिस तरह आज तक आप लोगों का आशीष हम पर है वो इसी तरह हमपर हमेशा बरसता रहे.

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13 comments:

Anita kumar said...

वाह बड़े भैया, आप का भार्त प्रेम देख कर हम भी गद गद हैं । बहना की कहानी सुनने को बेकरार्। आज आप की सफ़लता का राज वही पिता जी के चांटे हैं इस में कोई शक नहीं।

Yunus Khan said...

सुंदर पोस्‍ट । अदभुत । अजीत भाई सचमुच बहुत ही मार्मिक पोसट लगी ये ।

Yunus Khan said...

ओह मैं किसी और ही तरंग में था । पहले चार अप्रैल वाले ब्‍लॉगिए को जन्‍मदिन मुबारक फिर सत्‍ताई मार्च वाले टेक्‍नो को भी देर से ही सही मुबारक हो । :D

Abhishek Ojha said...

दिल को छूने वाला पोस्ट... आपको और सुजीत दोनों को जन्म दिन मुबारक हो... पूरे पोस्ट को पढ़ते समय ये लग रहा था कि अपनी कहानी पढ़ रहा हूँ... बस मैं छोटे वाले कि जगह था. धन्यवाद !

Kirtish Bhatt said...

बहुत सुंदर पोस्ट ........आपको जन्मदिन की बधाई.

उन्मुक्त said...

परिवार के सब सदस्यों से मिल कर अच्छा लगा।

Harshad Jangla said...

Ajitbhai

Nice post. Happy Birth Day!

-Harshad Jangla
Atlanta, USA
April 4, 2008

डॉ .अनुराग said...

अजीत इतनी इमानदारी से लिखने के लिए बधाई ...कुछ कुछ समझ रहा था इस लेख को पढ़कर फ़िर आखिरी कुछ line पढ़कर भावुक हो गया ,ये साली doctaro की कॉम ही ऐसी होती है. ......जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाये ....ओर हाँ छोटे से कहना .....बड़े जैसा ही बने ...इंसानी तौर से .....

सागर नाहर said...

बहुत ही बढ़िया दिल को छू लेने वाला लेख लिखा आपने..
४ अप्रेल हमारे लिये भी कुछ खास दिन है, हमारे छोटे सुपुत्र का भी इसी दिन जन्म हुआ है।
आप को जन्मदिन की देरी से हार्दिक बधाई, आप अपने देश और माता पिता का खूब नाम रोशन करें।

Manish Kumar said...

देर से ही सही जन्मदिन की हार्दिक बधाईयाँ। जीवन में संघर्ष कर अपने मुकाम तक पहुँचने का संतोष ही कुछ और है अच्छा लगा आपके परिवार के बारे में जानकर !

Alpana Verma said...

article is full of sentiments-and song is all time classic song-wish you happy belated birthday.

राज भाटिय़ा said...

अजीत,बहुत अच्छा लगा तुम्हारी यह पोस्ट पड कर,यह कहानी पढ कर हमे अपना घर याद आ गया,बिल्कुल हमारे घर भी ऎसा ही होता था, बस फ़र्क यह हे मे ज्यादा पढ नही पाया आप जितना, बहुत अच्छा लगा तुम्हारा यह उपहार, मेरी तरफ़ से तुम्हे जन्म दिन की बधाई, ओर ऎसे होनहार बच्चो के लिये तुम्हारे माता पिता कॊ भी बधाई.

Lucky's world... said...

Bhaiya aaj randomly mujhe ye blog haath lag gayi....its so so so touching...