कमजोर,
कातर नेत्रों से ताकती हुई.
गिन रही थी,
दो चार पल
जिंदगी के.
गुन रही थी,
हुई क्या उससे ख़ता.
बूचड़खाने
कटने खड़ी थी.
क्या थी उसकी विवशता?
( 5th Feb. 1994)
.... कहानी बीते हुए खट्टे मीठे पलों की, the ever untold story.
12 comments:
बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ।
शोभा जी ने सही कहा बहुत मार्मिक पंक्तिया है
उसकी खता यही थी कि वो इंसानी दानवों के हथ्थे चढ़ी थी। इसी लिए हम शाकाहारी हैं
वाकई मार्मिक.
Heart touching
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
May 7, 2008
आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा भी शुरु करवायें तो मुझ पर और अनेकों पर आपका अहसान कहलायेगा.
इन्तजार करता हूँ कि कौन सा शुरु करवाया. उसे एग्रीगेटर पर लाना मेरी जिम्मेदारी मान लें यदि वह सामाजिक एवं एग्रीगेटर के मापदण्ड पर खरा उतरता है.
यह वाली टिप्पणी भी एक अभियान है. इस टिप्पणी को आगे बढ़ा कर इस अभियान में शामिल हों. शुभकामनाऐं.
अनिताजी ने बिल्कुल सही कहा, वो इन्सानी दानवों के हत्थे ही तो चढ़ी थी।
ये नज़ारा देखकर ही हम शाकाहारी हो गये---
सचमुच आपकी सम्वेंद्नाये ओर भाव दोनों मार्मिक है...
दिल को छू लिया आपकी इन लाइनों ने...
अपनी डायरी के पृष्ठ कुछ तेजी से बदलिए ...
एक-एक शब्द ने बिल्कुल दिल को भीतर तक छू लिया।
Ajit saab
Since a month you have not given us anything. I visit yr blog daily and get a Nirasha.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
Post a Comment