दोस्तो,
एक बार मैं फिर हाजिर हूँ आपको अपने उन अनुभवों से रूबरू कराने को जिनसे मैं ख़ुद पहली बार मिला था।
इस 'पहली बार' की कड़ी में पहले आप मिल चुके है अज़ीज़ नाजां की उस क़व्वाली से, अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन की उस ग़ज़ल से, उस भजन से, और जगजीत सिंह जी से।
आज फिर मैं हूँ, आप हैं और है वो ...
जी हाँ, वो ग्रामोफोन , जिसे मैंने पहली बार अपने बड़े बाबूजी के यहाँ देखा। चूंकि उसे उनके बड़े बेटे प्रमोद भैया ही चलाते थे इसलिए मैं उसे भैया का बाजा ही कहता था।
पाँच - छः साल का रहा होऊंगा तब। रेडियो से जुडाव तब नया नया ही था। वो भी बच्चों के कार्यक्रम बाल मंजूषा तक ही. रेडियो पर गाने भी आते ही थे उस समय भी. पर यदि मैं कहूं कि सही मायनों में गानों से मेरे लगाव की वजह वो ग्रामोफोन ही था तो मैं ग़लत नहीं हूँ.
जब भी गाँव में शादी-ब्याह होते, नाटक होते, सरस्वती पूजा या काली पूजा होती, छठ पर्व की धूम नदी किनारे होती, इन अवसरों पर वो ग्रामोफोन खूब बजता।
हालांकि मेरे और भैया के घर के बीच दीवारें पड़ चुकी थी पर दिलों पर खींची दीवार अभी ऊंची नहीं हुई थी. पापा मुझे अपने कंधे पर बिठाकर उस घर में ले जाते और बड़ी माँ को आवाज़ देते हुए कहते- क्या मालकिन जी...? फ़िर मैं वहीं खेलने लगता।
उन्हीं दिनों में मैंने घूमने वाली और गाने वाली वो मशीन देखी थी। एक बक्सा जो खुला हुआ था और उसपर रखी थी घूमने वाली चकती। बगल में एक छोटे बक्से में भर कर रखी हुई कई काली चकतियाँ. उन काली चकतियों के बीच में लाल गोल कागज़ चिपका हुआ जिस पर बना था HMV का वो मशहूर प्रतीक- ग्रामोफोन के आगे बैठा एक कुत्ता.
तो साहब, मैं उस पूरे यंत्र को देख ही रहा था कि भैया ने उसकी handle घुमाई। एक लाल-काली चकती को उस पर रखा और वो चकती उस पर गोल घूमने लगी.भैया ने एक और handle को बक्से से उठाकर उस चकती के किनारे में रख दिया.
जनाब, छत पर रखे उस लाउड-स्पीकर से गाने बजने लगे।लाउड-स्पीकर तो मैं पहले से पहचानता ही था क्योंकि वो तो हमेशा बाहर से दिखता ही था और पापा ने उसका नाम भी बता दिया था। लेकिन उस बड़े से भोंपू के पीछे ये मशीन है, मैंने पहली बार ही जाना था।
गाने बजते जा रहे थे और मैं handle से छेड़ छाड़ करने लगा तभी भैया ने डांटा - सुई टूट जायेगी... सुई कहाँ है.? मैंने पूछा. तब उन्होंने बताया कि सुई इस handle के नीचे है और वो बहुत जल्दी टूट जाती है।
......इस तरह ग्रामोफोन से मेरा पहला परिचय हुआ था। वो बिजली से भी चलता था और बिना बिजली के भी, handle उमेठने के बाद।
एक दिन मम्मी ने तीज किया था, गाँव की और भी औरतें आयी थीं. ग्रामोफोन भी आया था अपने भाई भोंपू के साथ. रात भर "जय संतोषी माँ" फ़िल्म के भजन बजते रहे. दिन में बिजली कट गयी. कोई नहीं था अगल बगल, मुझे शरारत सूझी, मैं पहुँच गया ग्रामोफोन के पास. handle घुमाया, "नदिया के पार" की चकती उस पर रखी और चला दिया. मुझे कुछ बजता हुआ सुनाई दिया. कान लगाया तो पता चला जैसे जैसे सुई घूम रही थी वहीं पर आवाज़ भी निकल रही थी.मेरे लिए तो और आश्चर्य का विषय था. मैं इसके बारे में सबको बता रहा था.
शायद किस्सा -ए-ग्रामोफोन कुछ लंबा होता जा रहा है.... पर अभी तो भूमिका ही बांधी है मैंने।
अगर आप साथ देंगे तो इससे जुड़ा एक पॉडकास्ट भी आपके नज्र किया जायेगा।
मुझे आशा है कि आप दूसरा भाग भी जरूर पढ़ेंगे.
8 comments:
आज तो आप भी बचपन याद कर रहे हैं । बढ़िया है । सबके अलग अलग ानुभवों से बचपन की एक कॉलाज बन जाएगी ।
घुघूती बासूती
आज तो आप भी बचपन याद कर रहे हैं । बढ़िया है । सबके अलग अलग अनुभवों* से बचपन की एक कॉलाज बन जाएगी ।
घुघूती बासूती
Beautiful --
Do please continue ..
बिल्कुल पढेंगे और इंतजार करेंगेअगली कड़ी का।
बचपन की यादें ऐसी ही होती है।
जी हां, हम इंतजार कर रहे हैं अगली पोस्ट का भी और पाडकास्ट का भी। यह सब कुछ पढ़ कर अच्छा लगता है क्योंकि साथ साथ हम सब भी अपना बचपन भी जी लेते हैं। लगे रहो, अजित कुमार जी।
बहुत बढ़िया लगा , आपकी यादों को पढ़ कर और ग्रामोफोन के बारे में जानकर।
अच्छा ये बताइये इस श्रेणी में वे शरारतें भी आयेंगी जैसे आपने ग्रामोफोन, रेडियो, टॉर्च आदि चीजें खराब की हो..? बल्ब के होल्डर में वायर लगा कर घर का फ्यूज उड़ाया हो..?
भई हमने तो इस तरह के तकनीकी प्रयोग बहुत छोटी उम्र में कर दिये थे, यह अलग बात है कि हम उन अच्छी भली चीजों को बिगाड़ते ही थे और पिटते भी थे।
बहुत ही रोचक वर्णन है, लगा हम भी आप के गांव हो आये, पोडकास्ट का इंतजार है
अजीत भाई सुंदर विवरण । और जैसा कि सागर भाई ने कहा, तकनीकी प्रयोग उन्होंने भी बचपन में ही शुरू कर दिये थे । हम भी ऐसे ही थे । कितने रेडियो, प्रेस और ना जाने क्या क्या चीज़ें बिगाड़ीं । बहरहाल ग्रामोफोन एक जादुई उपस्थिति की तरह रहा होगा आपके जीवन में । हमारे घरों में ग्रामोफोन नहीं था हां स्कूल के ज़माने में एक मित्र के पास होता था जहां जाकर हम अमीन सायानी की गीतमाला के रिकॉर्ड सुना करते थे । पता है ना, गीतमाला के रिकॉर्ड एच एम वी ने जारी किये थे । और हां कुछ तकनीकी जानकारियां मैं जोड़ता चलूं---ग्रामोफोन की सुई को स्टाईलस कहते हैं और ये इसका सबसे नाजुक हिस्सा होता है । विविध भारती में अभी भी हमारे पास ऐसे रिकॉर्ड प्लेयर हैं और इनसे हमारा रोज का वास्ता पड़ता है ।
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