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Sunday, August 03, 2008

सावन का पावन महीना और भगवान भोलेनाथ के द्वारे जाते काँवरिया.....

आजकल सावन का  महीना चल रहा है और बारिश की फ़ुहारें हम सभी को दिलो दिमाग तक भिगोये जा रही हैं. कहीं सावन के झूले पड़ रहे हैं तो कहीं सावन के बादलों को विकलता से पुकारा जा रहा है. कहीं सावन का गुणगाण किसी शेरो शायरी से किया जा रहा है तो कहीं सावन से किसी को कई गिले शिकवे हैं. कहीं गाड़ी में गुलाम अली साहब सावन की गज़ल गा रहे हैं तो कहीं ज़िला खाँ सावन को अपने सुरों में सजा रही हैं.

....... पता नहीं कितने रूपों में सावन हमारे आस पास बिखरा पड़ रहा है. हर कोई अपने अपने तरीके से इसे समेटने में लगा है. तो मैने सोचा कि मैं सावन के किस रूप को अपने दामन में भर लूँ. ज्यादा सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्यूंकि सावन से जुड़ी बहुत ही आस्थापूर्ण याद मेरे जेहन में बसी है और आज मैं उसी याद को आपसे बाँटना चाह रहा हूँ, आशा है हमेशा की तरह एक बार फ़िर आप मेरे साथ यादों के सफ़र के हमराह होंगे.

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हमारे साथियों को पता ही होगा कि झारखंड राज्य स्थित देवघर में भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है जहाँ देश (और यहाँ तक कि विदेशों से भी) के कोने कोने से लोग आकर शिवलिंग पर गंगा जलाभिषेक करते हैं. भगवान भोले शंकर यहाँ बाबा बैद्यनाथ के नाम से विराजते हैं. इसी कारण देवघर को बाबा बैद्यनाथ धाम या बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है. बाबा भोले नाथ यहाँ भगवान रावणेश्वर के नाम से भी ख्यातिनाम हैं. इन नामों के  पीछे भी कथाएँ प्रचलित हैं.

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प्राचीन कथा यह है कि जब लंकाधिपति रावण को यह लगा कि भगवान शिव के लँका में प्रतिस्थापित हो जाने से उसका राज्य बिल्कुल सुरक्षित हो जायेगा तो उसने कैलाश पर्वत पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और भोलेनाथ ने अपने शिवलिंग को उसे दे दिया पर साथ ये भी निर्देश दिया किया कि अगर लँका से पहले किसी भी जगह इस शिवलिंग को जमीन पर रखा तो वह वहीं स्थपित हो जायेगा और फ़िर उसे ले जाना संभव नहीं रहेगा.  देवताओं में चिंता बढ़ गयी. उन्होंने वरुण देव से आग्रह किया और रावण को तीव्र लघुशंका हुई. उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और लघुशंका करने लगा. इस तरह शिवलिंग देवघर में उसी स्थान पर प्रतिष्ठित हो गया. इस तरह रावणेश्वर नाम से भगवान जाने गये. कालांतर में बैद्यनाथ नाम के एक भील ने इसे पूजा जिससे यह बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना गया, ऐसा माना जाता है.

बाबा बैद्यनाथ का यह शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग है. शिव महापुराण में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंग का विवरण इस प्रकार है..

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोड्कारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशड्करम् । सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे । हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥
एतानि ज्योतिर्लिड्गानि सायंप्रातः पठेन्नरः । सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥

ऐसी मान्यता है कि अगर उत्तरवाहिनी गंगा से जल लाकर बाबा के ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया जाये तो बाबा विशेष प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हमेशा भक्त पर बनी रहती है. सो प्रत्येक सावन के महीने में बाबा के भक्त देश और विदेशों के कोने कोने से आते हैं , सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा में पवित्र स्नान करते हैं, अपने पात्रों में जल लेते हैं और काँवर कांधे पर टांग कर रवाना हो जाते हैं बाबा भोले नाथ के द्वारे अपनी भक्ति निवेदित करने, अपने लाये जल को बाबा को समर्पित करने.

शिवभक्त काँवरिया उत्तरवाहिनी गंगा, सुलतानगंज से बाबाधाम,देवघर तक का 105 km का दुरूह सफ़र पैदल ही नंगे पाँव तय करते हैं. बोल बम- बोल बम, ऊँ नमः शिवाय का रट लगाते काँवरिया एक दूसरे को साहस दिलाते बढ़ते जाते हैं......

आइये बाबा का भजन करें..

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भक्ति का ये सफ़र कल भी जारी रहेगा. चूँकि ये सफ़र बहुत लंबा है सो आप सब आशा है भगवान शिव की की आराधना में सावन के तीसरे सोमवार को भी साथ रहेंगे. श्रावणी सोमवारी बाबा को विशेष प्रिय है और हम अपनी आराधना पूरी करेंगे..... जय बाबा बैद्यनाथ.

2 comments:

Harshad Jangla said...

Doctor Saab

I have read the article in a hurry, will read again at fursat. Bhajan is also good.
Aapne kafi mehnat ki hai.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत सुँदर जानकारी के साथ बाबा भोलेनाथ के द्वादश ज्तोतिर्लिँगोँमेँ से एक बैध्यनाथधाम के बारे मेँ स - विस्तार आलेख लिखा है -
जय शिवशँकर महादेव की !
हम भी काँवरीया लिये, आपके साथ हैँ
- लावण्या