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Saturday, May 08, 2010

जिंदगी जिधर ले जाए...



ये जिंदगी किसे बहाकर कहाँ ले जाय , ये कोई नहीं जानता है.

इसी तरह दौड़ती भागती दुनिया में तमाम तरह की चीजों से टकराते हुए मैं आखिर देश की राजधानी में अपना ठौर ढूंढता हुआ आ ही गया. जिंदगी ने मुझे अभी तक उतनी खुशियाँ नहीं दी है या यूं कहे कि इच्छाए कभी मरती नहीं और अच्छे से अच्छे की कोशिश में हम अपनी राह चुनते जाते हैं. इन्हीं राहों को चुनने की चाह ने मुझे अचानक दिल्ली पहुंचा दिया. देखता हूँ के यहाँ रह कर मैं उन बची खुची राहों को तलाश कर पाता हूँ कि नहीं.


( चित्र साभार nidhitayal.blogspot.com/)

Friday, April 30, 2010

सुर संग्राम विजेता………….. मैं ....?

                               आलोक और मोहन

इस सुपरहिट ग्रैंड फिनाले को हुए 6 महीने हो गए. उससे मुलाक़ात भी पहले हो चुकी थी. पर इस बार मैं अपनी मोटरसाइकिल से पटना आ रहा था और रास्ते में उसके घर रुक गया था. चाचाजी और चाचीजी ने आशीर्वाद दिया. दिन भर रुक कर खूब सारी बातें हुई. मेरे दोस्त (और उसके बड़े भैया ) , अरविन्द जी भी जो थे. बेचारे सभी अपने घर के renovation में लगे हुए थे और मजदूर काम कर कर रहे थे. अब वो सेलेब्रिटी जो बन गया है. परेशानी तो आपको साफ़ दिख रहा होगा.  

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पता नहीं मैं ऐसे पुरस्कार जीत पाऊँगा या नहीं पर उसे अपने हाथ में थाम तो सकता ही  हूँ.

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