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Wednesday, February 15, 2017

तारापुर शहीद दिवस ( 15 feb)

बात है अस्सी के दशक के उत्तरार्ध की. 
बिहार के मुंगेर जिले का तारापुर तब एक छोटा सा कस्बाई शहर हुआ करता था जहां अस्पताल , हाट बाजार , सिनेमा हॉल सभी था. तारापुर उतना विस्तृत नहीं हुआ था जितना अभी है. दुकाने और मकान भी इतने नहीं थे. बस स्टैंड अपने पुराने जगह पर था. पर हाँ, मुंगेर और जमुई जाने के लिए चौक पर से मैक्सी खुलती थी. टमटम ही सफर का मुख्य साधन था तथा हटिया के किनारे चौक पर टमटम स्टैंड हुआ करता था. मुख्य सड़क से दूर गाँव में जाने के लिए लोग साइकिल करते या पैदल चलते. माधोडीह , गनेली, हारपुर जाने के लिए भी टमटम लगे होते और उधर असरगंज ,रणगाँव या लौना खड़गपुर जाने के लिए भी.

जीवन अपनी धीमी रफ्तार से चलायमान था बिना रुके.

वो तारापुर थाना के सामने स्थित चौक जो गवाह था एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्रांतिकारी घटना का जिसे बरसों तक भुला दिया गया था पर उसे पता था कि एक दिन जरूर आएगा जब उसकी यह याद दुनिया कि नज़रों में आएगी तब उसे गर्व होगा अपने तारापुर चौक होने का.

उसी तारापुर के छोटे से गाँव महेशपुर से एक छोटा लड़का अपने पिता के साथ साइकिल से स्कूल आता था और छुट्टी होने पर अक्सर थाना चौक पर स्थित वीणा मिष्टान्न भण्डार में रसमलाई खाया करता जिसका स्वाद आज सालों साल बाद भी उसके जिह्वा से नहीं उतरा.

जिक्र इसलिए उठा क्यूंकि मौका है तारापुर शहीद दिवस ( 15 feb)का. तब तारापुर थाना की चहारदिवारी इतनी ऊँची थी कि अन्दर देखना मुश्किल था. द्वार के दोनों ओर हमारा राष्ट्रीय चिह्न शोभायमान था. पिता बताते कि यह वही थाना है जहाँ अनगिनत वीरों ने तिरंगा लहराते वक़्त अपनी कुर्बानी दे दी थी. बच्चे को हमेशा उत्सुकता रहती कि कैसा रहा होगा वो दिन जब ये ह्रदयविदारक घटना हुई होगी.

बच्चा अपने गाँव महेशपुर में रोज देखता कि एक छत पर तिरंगा फहराता रहता था .... दादी ने बताया कि वो भोटियल का घर है..जो स्वतंत्रता सेनानी हैं और जिन्होंने तारापुर थाना पर तिरंगा फहराने में अन्य शहीदों कि मदद की थी. भोटियल अर्थात शुद्ध शब्दों में- वोलेंटियर. वो वोलेंटियर थे मेरे गाँव के महावीर प्रसाद सिंह , फिर हमें पापा ने और दादी ने बताया कि कैसे उन वीरों के जत्थे ने थाने के ऊपर गोलियां खाते हुए भी तिरंगा लहराया था. महावीर बड़े बाबू जी को भी अंग्रेजी सैनिकों ने शहीदों के साथ बोरे में भरकर गंगा में फेंक दिया गया था. बोरा बहकर किसी किनारे लगा और वो किसी तरह बच पाए. इसी गोलीकांड में हमारे गाँव के गैबी सिंह का भी नाम था जो शहीद हो गए थे. लगभग ३४ लोग शहीद हुए और कितने ही घायल रहे.
इन्हीं वीरों के नाम एक स्मारक बनाया गया जो तारापुर थाना के ठीक सामने अवस्थित है. इस स्मारक में उन वीर क्रांतिकारियों के नाम अंकित हैं. कालांतर में स्मारक के साथ ही एक भवन का निर्माण भी हुआ जिसे शहीद स्मारक भवन कहा जाता है. इसकी  दूसरी मंजिल पर एक पुस्तकालय हुआ करता था जहां हमने कई किताबें पढ़ीं.
वो पुराना वीणा मिष्टान्न भण्डार भी समय के साथ उठ गया और उस रसमलाई का स्वाद भी सिर्फ मेरी यादों में ही बस कर रह गया..
तारापुर का वह भीषण गोलीकांड सिर्फ हम जैसे उस समय के बच्चों की सुनी सुनाई कहानियों में ही रह जाता अगर आज के जोशीले युवा इसे दुनिया के सामने लाने की मुहीम न करते.सेवा ( SEWA) संस्था से जुड़े और राष्ट्रीय स्तर के युवा नेता जयराम विप्लव जी , चंदर चाचा जी इत्यादि के द्वारा अगर इस मुहीम को धार न दी जाती तो तो ये संभव नहीं था. आज तारापुर ही क्या , इस सोशल मीडिया के द्वारा पूरी दुनिया तारापुर के वीर शहीदों को नमन कर रही है. काश हमें भी मौका मिल पाता कि हम पुनः अपनी धरती पर जाकर अपना सर उन शहीदों की स्मृति में झुका पाते जैसे कभी वहाँ रहते हुए हमने किया था.
जय हिंद .. वन्दे मातरम्...

2 comments:

Unknown said...

Nice big brother

Unknown said...

#TarapurShahidDiwas