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Tuesday, February 19, 2008

अथ श्री ग्रामोफोन गाथा....




                                                   vinyl_record

( एक बार आप लोगों से क्षमा प्रार्थना के साथ ये पोस्ट आपके लिए फ़िर से हाजिर है...)

...... ग्रामोफोन से मेरा परिचय तो भैया ने करवा ही दिया पर ये परिचय एक लगाव में परिणत हो गया। अब तक जिन गानों से मेरा सिर्फ़ दूर का नाता था अब वो मेरे क़रीब बजने लगे थे और मैं सम्मोहित सा हो गया था.

जब भी गाने बजने लगते मैं मम्मी से बहाने बनाकर पहुँच जाता ग्रामोफोन के पास। उसे इस क़दर देखता मानो अभी गाने वाले उसके अन्दर से बाहर आ जायेंगे। बाहर वो बड़ा सा भोंपू ( लाउड स्पीकर) बजता होता फ़िर भी कान लगा कर सुनने की कोशिश करता कि अभी भी यहाँ से आवाज़ निकल रही है कि नहीं.आस पास देखता कि कोई नहीं है तो सुई उठा कर कभी बीच में रख देता तो कभी अंत में। लोग दौड़े आते कि एक गाना बज रहा था तो अचानक दूसरा कैसे बजने लगा, और मेरा कान उमेठ दिया जाता जैसे मेरा कान ही उस ग्रामोफोन का handle हो.


ये मेरे लिए बहुत ही अचरज का विषय होता कि जब हम सुई को चकती के एक किनारे में रखते हैं तो वो उस अन्तिम किनारे तक कैसे पहुँच जाती है। भैया बताते कि चकती में खाँच बने हुए हैं. पर मुझे समझ में नहीं आता. मुझे तो वो रेकॉर्ड, जी हाँ, चकती को रेकॉर्ड कहते हैं ये मैं जान गया था, बिल्कुल चिकना नजर आता था.


अब जब रेकॉर्ड का मतलब मुझे पता चल चुका था तो भी मुझे एक परेशानी ने घेर लिया था। जब भी बड़े लोग ,भैया लोग कहते - ओह आज त पानी एतना पड़ै छै कि रेकार्डे टूटी जैतै, एतना रन बनैलकै कि रेकार्डे टूटी गेलै.... - मैं तो मुश्किल में पड़ जाता कि ये रेकॉर्ड कैसे टूट जायेगा, ये तो बक्से में बंद है. ये परेशानी भी बाद में दूर हुई.


ग्रामोफोन की बात करूं और मैं उसके रेकॉर्ड्स की बात ना करूं तो बात पूरी हो ही नहीं सकती। आख़िर सारे गानों की जान तो वही थे.

एक छोटे से बक्से में बंद रहते थे वे सारे रेकॉर्ड्स। बहुत नाजुक मिजाज़ वे रेकॉर्ड्स अगर हाथ से छूट गए तो फ़िर गए. काले काले चमकते हुए रेकॉर्ड्स जिनके बीच में लाल रंग का गोल सा कागज़ चिपका होता था जिसपर कंपनी का लेबल फ़िल्म का नाम ,गानों के नाम, और सारे विवरण होते.
वैसे तो भैया के पास अधिकतर छोटे साइज़ के रेकॉर्ड्स ( 7 इंच के) थे पर कुछ उनके पास बड़े रेकॉर्ड्स ( १२ इंच के) भी थे। इन बड़े और छोटे साइज़ के रेकॉर्ड्स के बारे में पूरी जानकारी आप यहाँ(विकिपीडिया) से ले सकते हैं।

मैं उन रेकॉर्ड्स के लेबल्स पर के नामों को पढ़ता और कुछ-कुछ समझने की कोशिश करता। पर उनमें से मुझे सबसे ज्यादा fascinate किया HMV के उस logo ने - एक ग्रामोफोन और उसके आगे बैठा एक कुत्ता,जो मानो उस लाउड स्पीकर में गा रहा है.... या सुन रहा है.? मुझे आज तक समझ नहीं आया है. भैया के पास जितने भी रेकॉर्ड्स थे उनमे वो logo रहता ही था अर्थात वो सभी HMV के ही थे. कुछेक मुझे याद आती है के दूसरी कंपनियों के थे. तभी से शायद मुझे HMV से एक तरह का लगाव हो गया, जब मैंने अपना कैसेट प्लेयर खरीदा तो सबसे ज्यादा HMV के ही कैसेट खरीदे।


उतने सारे रेकॉर्ड्स के बीच में जो गाने मुझे याद आते हैं उनकी फिल्में हैं - रोटी,कपडा और मकान॥, जय संतोषी माँ, और नदिया के पार।


आज इस ग्रामोफोन गाथा को आगे बढ़ाने का श्रेय अगर मैं दूंगा तो वो इन्हीं फिल्मों के गाने हैं जिन्हें मैं लाख चाहूँ , अपने जेहन से कभी उतार नहीं सकता। कल मैंने आपसे वादा किया था आपके लिए एक पॉडकास्ट लेकर आऊँगा, तो दोस्तो, इन्हीं में से एक गाने को मैं आपके लिए लेकर आया हूँ. इस गाथा को मैं आज अपने अंजाम तक पहुँचाउंगा और इसके साथ ही शुरुआत होगी एक ऐसे फ़नकार पर एक श्रृंखला की जिन पर शायद सबसे कम लिखा गया.


एक ऐसा फ़नकार जिसने हमें इतने खूबसूरत गीतों से नवाज़ा। अपनी मधुर और रस बरसाती आवाज़ का जादू हमपर बरसाने के बाद आज की इस शोर भरे संगीत से अलग रख कर अपनी संगीत साधना में तल्लीन है.


यूँ तो फ़िल्म " नदिया के पार" के सभी गाने एक से बढ़कर एक हैं, और आपने उन्हें खूब सुना भी होगा. पर आज जो गीत मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ, उसे मैंने पहली बार पसंद किया था जब वो ग्रामोफोन पर बजता था। हेमलता और जसपाल सिंह जी की मधुर आवाज़ का जादू उस समय भी मेरे मन पर वैसे चढ़ा था मानो कभी नहीं उतरेगा और ये सौ फीसदी सच है.आंचलिकता की खुशबू समेटे ये दोगाना ग्रामीण परिवेश के प्रेमियों के बीच निश्छल प्यार की शुरुआत और छेड़ छाड़ के रिश्ते की क्या खूब कहानी कहता है. रवीन्द्र जैन जी का दिल को छू लेने वाला संगीत मानो हमारे सामने गाँव की उसी दुनिया को साकार कर देता है.

"साथ अधूरा तब तक जब तक,

पूरे ना हों फेरे सात हो।"

आइये गीत सुने और उस फ़नकार के फ़न को सलाम करें।

Kaun Disha Mein Le...

4 comments:

सागर नाहर said...

ग्रामोफोन की कथा में मजा आ रहा है, उस बात पर तो हंसी आ गई.. रिकॉर्ड टूटने वाली!!
यह कड़ी जारी रखें।

Anita kumar said...

रोचक वर्णन और बड़िया गीत

Pramendra Pratap Singh said...

अच्‍छी जानकारी प्रस्तुत किया है बधाई

Yunus Khan said...

अजीत भाई इस कथा को जारी रहना चाहिए । सात इंच के रिकॉर्डों को ई पी यानी एक्‍सटेन्‍डेड प्‍ले कहते हैं ये 45 आर पी एम पर चलते हैं और बारह इंच के रिकॉर्ड कहलाते हैं एल पी यानी लॉन्‍ग प्‍ले । ये लगभग तैंतीस आर पी एम पर चलते हैं । कुछ रिकॉर्ड इनसे अलग साइज़ के भी होते हैं जिनमें 78 आर पी एम पर चलने वाले रिकॉर्ड हैं जो आम बोलचाल की भाषा में पत्‍थर के रिकॉर्ड कहे जाते हैं । इनके लिए खास तरह के ब्‍लैक स्‍टाईलस/सुई की जरूरत पड़ती है । विविध भारती में ऐसे रिकॉर्डों का भी खज़ाना है । और हां कुछ रिकॉर्ड एल पी से भी बड़े होते हैं । उनके बारे में फिर कभी । दास्‍तान जारी रहे ।