ये जिंदगी किसे बहाकर कहाँ ले जाय , ये कोई नहीं जानता है.
इसी तरह दौड़ती भागती दुनिया में तमाम तरह की चीजों से टकराते हुए मैं आखिर देश की राजधानी में अपना ठौर ढूंढता हुआ आ ही गया. जिंदगी ने मुझे अभी तक उतनी खुशियाँ नहीं दी है या यूं कहे कि इच्छाए कभी मरती नहीं और अच्छे से अच्छे की कोशिश में हम अपनी राह चुनते जाते हैं. इन्हीं राहों को चुनने की चाह ने मुझे अचानक दिल्ली पहुंचा दिया. देखता हूँ के यहाँ रह कर मैं उन बची खुची राहों को तलाश कर पाता हूँ कि नहीं.
( चित्र साभार nidhitayal.blogspot.com/)
Saturday, May 08, 2010
जिंदगी जिधर ले जाए...
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6 comments:
bhavishya ke liye shubhkamnayein...
मुबारक। शुभकामनाएं भी।
I wish you all the best.
shubhkaamnaaeiN . . .
बहुत सुंदर चित्र और टिप्पणी भी । पर अब नई पोस्ट कहां है ।
बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुुति।
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