"अहा!जिंदगी" में पढ़ा ..... जाना ....
अपनी अल्पज्ञता पर क्षोभ भी हुआ....
पता चला ...
चक्रधर जी भी जाल (नेट) में फँस ही गए....
तभी उनके पोल खोलक यन्त्र का नया version ....
मेरे computer पर spyware की भांति आ धमका।
मैंने सोचा ,
लगता है ब्लॉग पढाकुओं की जोरदार फरमाइश पर...
चक्रधर जी ओरिजनल की पायरेटेड virsion फ्री बाँट रहे हैं ....
खुद तो कभी अमृत कभी जहर का घूंट तो पिया ही,
हमे भी करेले का रस चखा रहे हैं....
Thursday, October 04, 2007
चक्रधर जी जाल में...
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2 comments:
Ajit ji
Kya yeh Delhi wale Chakradhar hai.
aapka andaaze bayan kuch jyada acha hai.
Karele ka ras!!!
kadwahat bhi nigalni lazmi hai kabhi kabhi.
Devi
जी हाँ देवी जी, ये अशोक चक्रधर जी हैं जिनके ब्लॉग मे एक पोस्टिंग के कमेंट के रूप मे मैंने इस कविता की रचना की थी. यदि आप उनका वो ब्लॉग पढे तो ज्यादा अच्छा लगेगा. ashokchakradhar.blogspot.com
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