"या देवी सर्वभूतेषु,
शक्ति रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः।"
शक्ति की आराधना का दस दिवसीय महाप्रयोजन (नवरात्र)कल यानी शुक्रवार , 12 अक्तूबर 2007 , से शुरू हो रहा है। माता फिर से अपने भक्तों को अपने आशीष देने चली आ रही हैं। हर बार आती हैं, दुनिया बदलते हुए देखती हैं, अच्छे कामों से खुश होती हैं, भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं.
आज नवरात्रे की पूर्व संध्या पर मैं अपने यादों के गलियारे में जा रहा हूँ. जबसे मैंने होश संभाला था, अपने घर में भक्तिमय वातावरण हमेशा पाया। उस समय भी जब मेरी विदुषी दादीजी की छत्रछाया हमारे ऊपर थी और आज भी जब उनकी कमी हमेशा महसूस होती है तब भी। उस समय जब गाँव की लड़कियां पढ़ा लिखा कम ही करती थीं, हमारी दादी, स्व आर्या देवी, ने मध्य विद्यालय से उच्च विद्यालय तक scholarship प्राप्त की थीं। हालांकि उनका बाल विवाह हो गया था पर उन्होने मेट्रिक तक पढ़ा था। विद्यालयी शिक्षा से इतर उन्होने रामायण , महाभारत , गीता भी उन्होने ख़ूब पढ़ा था। शायद यही कारण था कि बचपन में हमने उनसे कहानियों के साथ साथ इन महाकाव्यों के उद्धरण भी ख़ूब सुने। उन्हीं दिनों शायद भक्ति का बीज मेरे मन में प्रस्फुटित होने लगा था। मम्मी - पापा का सुबह शाम -
"या देवी सर्वभूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता:,नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः।" और गायत्री मन्त्र का पाठ मुझे अच्छा लगने लगा था।
धीरे- धीरे मैं बड़ा होता गया, भक्ति की छाप और भी गहरे चली गयी। हम लोग दादी को छोड़कर मम्मी पापा के साथ गाँव से दूर शहर , जी हाँ, हमारे लिए वो हमारा शहर ही था, आ गए स्कूली पढ़ाई करने के लिए। वहीं थोड़ी दूर पर एक मंदिर था, बल्कि आज भी है, सुबह से ही भक्ति गीतों के कैसेट बजने लगते थे । हमारे पापा हमें ब्रह्म मुहूर्त में ही उठा देते और हमारे कानों मे पड़ता ,रस घोलता भजन सम्राट "अनूप जलोटा जी" और "हरिओम शरण " जी के भक्ति गीत. मन , वातावरण सब भक्तिमय हो जाता.
"या देवी सर्वभूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता:,नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः।" और गायत्री मन्त्र का पाठ मुझे अच्छा लगने लगा था।
धीरे- धीरे मैं बड़ा होता गया, भक्ति की छाप और भी गहरे चली गयी। हम लोग दादी को छोड़कर मम्मी पापा के साथ गाँव से दूर शहर , जी हाँ, हमारे लिए वो हमारा शहर ही था, आ गए स्कूली पढ़ाई करने के लिए। वहीं थोड़ी दूर पर एक मंदिर था, बल्कि आज भी है, सुबह से ही भक्ति गीतों के कैसेट बजने लगते थे । हमारे पापा हमें ब्रह्म मुहूर्त में ही उठा देते और हमारे कानों मे पड़ता ,रस घोलता भजन सम्राट "अनूप जलोटा जी" और "हरिओम शरण " जी के भक्ति गीत. मन , वातावरण सब भक्तिमय हो जाता.
क्या आज आपका मन नहीं कर रहा भक्तिमय होने का? नवरात्रे कल से शुरू हो रहे हैं , आइये अपने आप को कल के लिए तैयार करें. आइये आज मैं आपको एक पसंदीदा भजन सुनवाऊं जिसने पहले पहल मुझे अनूप जलोटा जी की आवाज़ से मेरी पहचान कराई. और मेरे जेहन मे इसकी छाप अभी भी है और हमेशा रहेगी .
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2 comments:
आनन्द आया भजन सुन कर, आभार पेश करने के लिये.
भजन तो सुंदर है ही, आपका नवरात्री के उपलक्ष में लिखा लेख भी बडा अच्छा है ।
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