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Thursday, October 25, 2007

साहिर साहब और ये चाँद....

25 अक्तूबर 1980, एक ऐसा दिन जिसने हमसे एक हरदिल अजीज शायर को हमसे छीन लिया था। जी हाँ , मैं बात कर रहा हूँ शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी साहब की। यूँ तो उनका नाम उनके वाल्दायन ने रखा था अब्दुल हई, पर हम उन्हें साहिर लुधियानवी के नाम से ही जानते हैं।

८ मार्च १९२१ की बात है जब साहिर साहब ने इस दुनिया में कदम रखा। और किसे पता था कि लुधियाना में उदित होने वाला यह सितारा एक दिन सारे सारे जहाँ में अपनी चमक बिखेर देगा। जमींदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी साहिर का जीवन संघर्षपूर्ण रहा। अपने कॉलेज की पढाई उन्होने लाहौर में पूरी की उन्ही दिनों शुरुआत हुई थी उनकी ग़ज़लों और नज्मों की बरसात। कहा जाता है कि उस बरसात से अमृता प्रीतम जी भी नहीं बच पाई थीं। शायद उपर वाले को भी ये मंजूर नहीं था ,इसलिए उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया।
इसी के बाद उन्होने अपनी पहली उर्दू रचना " तल्खियां" लिखनी शुरू की थी जो दो वर्ष बाद प्रकाशित हुई।

आज मैं आपको साहिर साहब की रचना " ये रात ये चांदनी फिर कहाँ ...." सुनवाने जा रहा हूँ। इस गीत को गाया है हमारे आपके प्रिय हेमंत दा ने जिनकी आवाज़ भी इस गीत की तरह ही शफ्फाक़ है। इस गीत को सुनवाने में भी एक रहस्य छुपा है।

जी हाँ, आज पूर्णिमा है और nasa अर्थात अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि आज ( गुरुवार,2५ अक्तूबर ) की रात ये चाँद हमारी पृथ्वी के काफी करीब होगा और अन्य पूर्णिमा के बदले आज चाँद 14 % बड़ा और 30% ज्यादा चमकदार दिखेगा। यानी आज अपना चाँद पूरे शबाब पर होगा।

क्यों , है ना बात आज के चाँद में ?
तो आइये हम एक साथ ही चाँद के बहाने साहिर साहब को याद करें या साहिर साहब के चाँद को देख कर उन्हें श्रद्धान्जलि अर्पित करें.....

शायरी को दाद देते हुए सुने ये गीत....

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1 comment:

Udan Tashtari said...

साहिर जी को हमारी भी श्रृद्धांजली.

इससे बेहतर पुण्य तिथी मनाने का और इससे बेहतर कोई भी श्रृद्धांजली क्या हो सकती है. बहुत बेहतर, डॉक्टर साहब.