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Saturday, October 13, 2007

"द्वितीय ब्रह्मचारिणीं"


या देवी सर्वभूतेषु,
विद्या रूपेण संस्थिता:,
नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमस्त्स्यै, नमो नमः.


माता के भक्तो ,
सप्रेम नमस्कार!
कल आपने माँ की पूजा का विधिवत शुभारंभ किया।माँ सबको शक्ति दें कि हम उनकी पूजा निर्बाध रुप से पूरे नवरात्र करते रहें।

"प्रथमं शैलपुत्री" के बाद माँ का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है अर्थात " द्वितीयं ब्रह्मचारिणीं "।
माँ श्वेत धवल वस्त्रों मे अत्यंत तेजोमयी प्रतीत होती हैं। उनके दाहिने हाथ मे माला और बांये हाथ में कमंडलु सुशोभित है। वे धरती पर खड़ी हैं।
माँ का यह रुप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य मे तप,वैराग्य ,सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। माँ की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।
सर्वमंगलमाङ्ल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ,
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तु ते।
नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान कराने वाली मंगलमयी हो। कल्याणकारिणी शिवा हो। सब पुरुषार्थ को सिद्ध करने वाली , शरणागत वत्सला , तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है.
तो भक्तों, आइये आज हम फिर से माँ की आराधना मे जुट जाएँ ।
माँ हम सब भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करें।
वातावरण को भक्ति से ओतप्रोत करने के लिए मैं आज फिर आप सबों की ओर से माँ को एक भजन समर्पित करता हूँ।

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