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Monday, October 15, 2007

"कूष्माण्डेति चतुर्थकम"


या देवी सर्वभूतेषु,
विद्या रुपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै.. नमस्तस्यै..नमस्तस्यै... नमों नमः।

माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम "कूष्माण्डा" है।अपनी मन्द मुस्कान के द्वारा उन्होनें इस ब्रह्माण्ड की रचना की अतः उन्हें "कूष्माण्डा देवी" के नाम से जाना जाता है। माँ सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं था। इन्हीं के तेज से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं.

माँ की आठ भुजायें हैं और ये अष्टभुजा भी कहलाती हैं.इनके सात हाथों में कमण्डलु, धनुष, बाण,कमल-पुष्प,अमृत-कलश,चक्र तथा गदा है। माँ के आठवें हाथ में सिद्धि - निधि देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

माँ कूष्माण्डा की आराधना से भक्तों के सारे रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं,इनकी भक्ति से आयु , यश, बल तथ आरोग्य की वृद्धि होती है।

भक्तों, आज मैं आपको अपने पसंद की ऎसी भक्ति रचना सुनवाने जा रहा हूँ जिसे जब भी मैंने दशहरे के दिनों में सुना, एक अलग ही दुनिया में पहुच जाता था। जब भी मैं अपने पुराने शहर,तारापुर, में रहा हरेक दुर्गा पूजा में इसे सुनता था जो वहीँ पास के मंदिर में बजता रहता था। मैं बात कर रहा हूँ "दुर्गा सप्तशती" के पाठ की। दूर से आती हुई "पं सोमनाथ शर्मा" की गूंजती हुई आवाज़ मेरे दिल-दिमाग पर छा जाती थी। हालांकि मुझे परसों तक पता नहीं था कि वो आवाज़ जिसे मैं बचपन से जानता हूँ वो किनकी है,पता तब चला जब कल मैंने पहली बार उसे खरीदा। पूरा तो नहीं पर मेरा अत्यंत पसंदीदा भाग मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ। पहले क्लिप में संस्कृत में और बाद में उसका हिंदी अनुवाद है.

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